Book Title: Sadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Author(s): Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 354
________________ साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी ३३२ की चेतना को प्रकट करने वाले हैं। इस सन्दर्भ में उनका चिन्तन था कि जब तक शरीर है, पग-पग पर बीमारी की संभावना बनी रहती है पर उससे भयभीत होकर हताश, निराश या अकर्मण्य हो जाएं तो जीना कठिन हो जाता है तथा दर्द की अनुभूति भी बढ़ जाती है। लाडनूं प्रवास में गुरुदेव को एक रात्रि में श्वास का प्रकोप हो गया। दूसरे दिन श्रीचन्दजी रामपुरिया के प्रपौत्र अशोक ने गुरुदेव के स्वास्थ्य की सुखपृच्छा की। गुरुदेव ने फरमाया- 'जहां शरीर है, वहां छोटी-मोटी बीमारियां तो आती ही रहती हैं। शरीर में उत्पन्न वेदना से घबराना नहीं चाहिए। पथ में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। कोई उनसे भयभीत होकर चले ही नहीं, वह मंजिल कैसे पा सकता है? वैसे ही रोग शरीर का धर्म है, इसमें भी उतार-चढाव आते रहते हैं। इनसे घबराने से काम कैसे चलेगा?' पूज्य गुरुदेव की इस विदेहसाधना से अशोक दंग रह गया। इस अवस्था में इतना मनोबल उसके लिए आश्चर्य का विषय था। अन्य सन्तों के पास इस घटना का जिक्र करते हुए वह बोला- 'मैं गया था गुरुदेव की सुखपृच्छा के लिए लेकिन गुरुदेव के मानस पर तो अस्वास्थ्य का कोई असर ही नहीं है। आज मुझे जीवन का शाश्वत बोध मिल गया कि शारीरिक कष्ट आत्मिक आनन्द को मन्द नहीं कर सकता, यदि व्यक्ति देह की प्रतिबद्धता से मुक्त होकर विदेह की साधना कर ले।" लाडनूं से दक्षिण यात्रा की ओर प्रस्थान करते समय गुरुदेव तीव्र ज्वर से आक्रान्त हो गए। सबका चिन्तन था कि इतने तेज बुखार में विहार नहीं होना चाहिए पर गुरुदेव के तीव्र संकल्प एवं मनोबल ने हार नहीं मानी और विहार कर दिया। अनेक ग्रामीण लोग भी गुरुदेव के साथ चल रहे थे। अन्य दिनों की अपेक्षा आज बुखार के कारण गुरुदेव की चाल थोड़ी धीमी थी फिर भी लोग उनके साथ चलने में असमर्थता का अनुभव कर रहे थे। विहार के दौरान हांफते हुए एक चौधरी बोल उठा- 'ये गुरुजी बुखार में भी इतने तेज चल रहे हैं। हम तो दौड़ने पर भी इनका साथ नहीं निभा पा रहे हैं। हम तो बुखार में पैदल चलने की बात सोच भी नहीं सकते पर इनके चेहरे पर वेदना के कोई चिह्न दिखाई नहीं देते।' वेदना में सन्तुलित रहने की स्थिति गुरुदेव को भेदविज्ञान के अभ्यास

Loading...

Page Navigation
1 ... 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372