Book Title: Sadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Author(s): Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 346
________________ साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी ३२४ अहिंसा सार्वभौम के माध्यम से उसके प्रशिक्षण की बात कहकर गुरुदेव तुलसी ने अहिंसा को सामाजिक क्षेत्र में प्रतिष्ठित करने का अथक प्रयत्न किया। अहिंसा प्रशिक्षण का परिणाम उनके आत्मविश्वास की भाषा में पठनीय है- 'जिस दिन सामूहिक रूप से अहिंसा के प्रशिक्षण एवं प्रयोग की बात संभव होगी, हिंसा की सारी शक्तियों का प्रभाव क्षीण हो जाएगा।' उनके अहिंसक व्यक्तित्व का आकलन यशपाल जैन के शब्दों में इस प्रकार है- 'आचार्य तुलसी के पास कोई भौतिक बल नहीं, फिर भी वे प्रेम, करुणा एवं सद्भावना द्वारा अहिंसक क्रांति का सिंहनाद कर रहे हैं। विनोबा तो अंतिम समय में एकान्त साधना में लग गये पर आचार्य तुलसी के चरण इस उम्र में भी गतिमान हैं। उनकी अहिंसक साधना अविराम गति से लोगों को सही इंसान बनाने का कार्य कर रही है।' पूज्य गुरुदेव ने अहिंसा को सैद्धान्तिक एवं दार्शनिक गुत्थियों से बाहर निकालकर जीवन-व्यवहार के साथ जोड़ने का प्रयत्न किया। अहिंसा के संदर्भ में व्यक्त प्रस्तुत अभिव्यक्तियां इसी रहस्य को प्रकट करने वाली * यदि छोटी-छोटी बातों पर तू-तू, मैं-मैं होती है तो समझना चाहिए, अहिंसा का नाम केवल अधरों पर है, जीवन में नहीं। * अहिंसा के जगत् में इस चिंतन की कोई भाषा नहीं होती कि मैं ही रहूं, मैं ही बचूं या अंतिम जीत मेरी ही हो। वहां की भाषा यही होती है- अपने अस्तित्व में सब हों और सबके अस्तित्व का विकास हो। * आप लोग न मारें तो मैं भी आपको नहीं मारूं, आप यदि गाली नहीं दें तो मैं भी गाली न दं, ऐसा विनिमय अहिंसा में नहीं होता। * प्रतिकूल परिस्थिति या प्रतिकूल सामग्री के कारण किसी के मन में अशांति हो जाती है तो यह उसका आत्महनन है, जो हिंसा का ही एक रूप है। * मैं मानता हूं अहिंसा केवल मंदिर, मस्जिद या गुरुद्वारा तक ही सीमित न रहे, जीवन-व्यवहार में उसका प्रयोग हो। अहिंसा का पहला प्रयोगस्थल है-व्यापारिक क्षेत्र, दूसरा क्षेत्र है- राजनीति।

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