Book Title: Sadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Author(s): Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 336
________________ ३१४ साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी था, जिसकी अभिव्यक्ति मौन से अधिक कुछ नहीं हो सकती। सातड़ा गांव की उस रात्रि में मैंने जिस अपूर्व और अनिर्वचनीय आनन्द का अनुभव किया, उसकी स्मृति मात्र से रोमांच हो आता है। लगभग एक घंटा पद्मासन में बैठने के बाद मैंने आंखें खोलकर चारों ओर देखा। मुझे ऐसा प्रतीत हुआ कि कोई अदृश्य शक्ति मेरा सहयोग कर रही है। मैंने मन ही मन कहा- कौन है? क्या है? कुछ प्रत्यक्ष दिखाई क्यों नहीं दे रहा है ? मुझे लगता है कि कोई सहारा दे रहा है, पर वह दिखाई क्यों नहीं दे रहा है? यह समाधि की स्थिति है अथवा और कुछ है? मेरे द्वारा क्या होने वाला है? कम से कम कोई ऐसा चिह्न ही प्रकट हो जाए, जो मुझे प्रत्यक्ष आभास दे सके। मन ही मन बहुत पुकारा, पर कोई सामने नहीं आया। शब्दों की कुछ ऐसी आकृतियां उभरकर आईं कि गहराई में जाओ, आज संसार में जो मानवीय समस्याएं हैं, उनका समाधान करो।" क्या मेरे द्वारा कोई समाधान होगा? इस प्रश्नचिह्न को विराम मिला, अपने ही भीतर से उठकर वहीं विलीन होने वाले नाद से- "हां, समाधान होगा, समाधान होगा।" ये शब्द कहां से आए और कहां गए, कुछ ज्ञात नहीं। बस इतना-सा याद है कि मैं उस समय बिल्कुल हल्का हो गया था और ऐसा लग रहा था मानो मैं पट्ट से ऊपर उठ रहा हूं। मन में इच्छा जगी कि सारी रात ऐसे ही बिता दूं। पर पता नहीं क्यों मैंने ध्यान समाप्त कर दिया और महाप्रज्ञजी को बुला लाने का निर्देश दिया। तब तक मनि मधुकर भी जाग चुका था। वह महाप्रज्ञजी को बलाने गया।असमय में नींद से जगाने पर वे घबरा गए। उनका पहला प्रश्न था"आचार्यश्री का स्वास्थ्य कैसा है? स्वास्थ्य ठीक है, यह सुनकर वे आश्वस्त हो गए। उनके आने पर मैंने पूरा घटनाक्रम उनको सुना दिया। पूरी बात सुनकर वे बोले- "आप में अर्जित शक्तियां बहुत हैं। उनका उद्घाटन कभी-कभी ऐसे ही होता है। आप जिस निर्विकल्पता की स्थिति में हैं, वही आनन्द की अवस्था है। अब तो काफी समय हो चुका है। थोड़ी देर आप लेट जाइए।" .. मैंने कहा लेटने की इच्छा ही नहीं हो रही है। मैं फिर ध्यान में

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