Book Title: Sadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Author(s): Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 307
________________ २८५ साधना की निष्पत्तियां पूज्य गुरुदेव ने सुजानगढ़ मर्यादा महोत्सव की घोषणा कर दी। सुजानगढ़ पहुंचने पर अपनी भावना व्यक्त करते हुए गुरुदेव ने फरमाया- 'हालांकि लोगों को अब तक भी कल्पना नहीं थी कि मेरा लाडनूं से विहार हो जायेगा। पर मेरा संकल्प दृढ़ था कि बहुत दूर न भी जा सकूं तो कम से कम सुजानगढ़ तो अवश्य पहुंच जाऊंगा । इसी संकल्प एवं पुरुषार्थ की निष्पत्ति है कि मैं आज सुजानगढ़ में आप लोगों के बीच हूं।' 1 पूज्य गुरुदेव ने दक्षिण यात्रा की घोषणा की। इस उद्घोषणा से ज्योतिषियों में खलबली मच गई। उन्होंने अपनी भविष्यवाणी करते हुए कहा- 'आचार्य तुलसी किसी भी हालत में दक्षिण नहीं पहुंच सकेंगे । यदि वे यहां से उस ओर प्रस्थान भी कर देंगे तो बम्बई से आगे जाना नहीं होगा। इस समय आचार्य श्री के ग्रह नक्षत्र इस यात्रा के लिए अनुकूल नहीं हैं, इसलिए उनको उधर नहीं जाना चाहिए।' अनेक प्रबुद्ध लोगों ने गुरुदेव को निवेदन किया- 'दक्षिण में भाषा को लेकर प्रचण्ड विवाद चल रहा है अतः आप अपनी बात वहां की जनता तक नहीं पहुंचा सकेंगे। वहां हिन्दी के नाम पर ही मारकाट होती है अतः आप दक्षिण यात्रा का निर्णय बदलकर किसी अन्य प्रदेश की यात्रा करें तो अच्छा रहेगा। राजनैतिक स्थितियां एवं मौसम आदि की प्रतिकूलता का भय भी गुरुदेव के सम्मुख प्रस्तुत किया गया। गुरुदेव ने सबकी बातें सुनीं पर अपने संकल्प पर दृढ़ रहे और दक्षिण की ऐतिहासिक एवं अभूतपूर्व यात्रा करके लौटे। अर्हत् वंदना को प्रायः सभी साधु-साध्वियां वज्रासन में करते हैं । पूज्य गुरुदेव अनेक बार अर्हत् वंदना के प्रारम्भ में सभा को सम्बोधित करते हुए कहते थे— “ 'अशक्त एवं वृद्ध व्यक्ति, जो बैठ न सकें अथवा जो वृद्ध होना चाहते हैं, उन्हें छोड़कर कोई भी इस आसन का अतिक्रमण न करें।" सन् १९९७ लाडनूं प्रवास में अर्हत् वंदना का समय हो गया । गुरुदेव वज्रासन में बैठने लगे तब पैर में वातजनित दर्द होने लगा। संतों ने गुरुदेव को सुखासन में बैठने का निवेदन किया पर गुरुदेव ने दृढ़-मनोबल के साथ कहा- 'ऐसे कैसे बैठ जाएं ? जहां तक हो सके हम वंदनासन में ही अर्हत् वंदना करते हैं । झटपट इस आसन को नहीं छोड़ते।' यह कहते हुए गुरुदेव वज्रासन में विराज गए। असह्य शारीरिक पीड़ा भी उनके

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