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का स्फुरण दिखाई पड़ता है, वहीं पर श्रद्धा टिकती है । 1 श्रद्धावान को कोई परास्त नहीं कर सकता । मानव में श्रद्धा जितनी तीव्र होगी, उतनी ही उसकी बुद्धि पैनी और प्रखर होगी । 2
ऋग्वेद के ऋषि ने कहा कि श्रद्धा से ही ऐश्वर्य प्राप्त होता है । " अतः कर्म में ही श्रद्धावान बन 14 बृहदारण्यक उपनिषद् में कहा गया है कि श्रद्धा से ही दक्षिणा प्रतिष्ठित होती है और हृदय में ही श्रद्धा प्रतिष्ठित है। स्कन्ध पुराण में वर्णन है कि - श्रद्धा ही समस्त धर्मों के लिए हितकर है । वेदव्यास ने लिखा है - श्रद्धा पाप से छुटकारा दिलाने वाली है । नारद पुराण का मन्तव्य है कि श्रद्धापूर्वक आचरण में लाए हुए सब धर्म मनोवांछित फल देने वाले होते हैं। श्रद्धा से ही सब सिद्ध होता है और श्रद्धा से ही भगवान सन्तुष्ट होते हैं ।"
तथागत बुद्ध ने सुत्तनिपात में कहा है-मानव श्रद्धा से संसार प्रवाह को पार कर जाता है ।" तथागत बुद्ध ने रूपक की भाषा में कहा :- एक खेत है, उस खेत में बीज वपन कर दिया गया है, उसके पश्चात्
१ हिन्दी साहित्य का इतिहास पृ. १४७
२ मोहनमाया ४७
३ श्रद्धा विन्दते वसु
४ श्रद्ध े श्रद्धापयेह नः
५ श्रद्धायां ह्य ेव दक्षिणा प्रतिष्ठाता हृदये व श्रद्धा प्रतिष्ठिता भवति
६ श्रद्धव सर्वधर्मस्य चातीव हितकारिणी
७ श्रद्धा पापमोचिनी
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८ श्रद्धा पूर्वाः सर्वधर्मा मनोरथफल प्रदाः । श्रद्धया साध्यते सर्वं श्रद्धया तुष्यते हरिः ।।
र सद्धाय तरती ओघं
- रामचन्द्र शुक्ल - महात्मा गाँधी
- ऋग्वेद (१०/१५१/१४) - ऋग्वेद (१०/१५१/१५)
- बृहदारण्यक उपनिषद् (३/६/२१)
( ७ )
- महाभारत शान्ति पर्व (२६४ / १५)
-स्कन्ध पुराण
- नारद पुराण (पूर्व भाग, प्रथम पाद ४ / १)
सुत्तनिपात (१/१०/४)
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