Book Title: Saddha Param Dullaha
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 9
________________ - स्वकीय कुरुक्ष ेत्र के मैदान में वीर अर्जुन के अन्तर्मानस में एक जिज्ञासा समुत्पन्न हुई कि इस विराट विश्व में सबसे अधिक पवित्र वस्तु क्या है ? अर्जुन ने वह जिज्ञासा कर्मयोगी श्रीकृष्ण के सामने प्रस्तुत की । श्रीकृष्ण ने चिन्तन के महासागर में गहराई से डुबकी लगाई और जब उनका चिन्तन ऊपर उभरकर आया तो उन्होंने कहा कि इस विराट विश्व में ज्ञान के समान अन्य कोई पवित्र नहीं है । ज्ञान के महासागर में जब हम अवगाहन करते हैं तब हम पवित्र बन जाते हैं । 1 ज्ञान से ही संसार - बन्धन का नाश होता है । " ज्ञान ही मानव जीवन का सार है ।" मुक्ति का द्वार है 14 वीर अर्जुन ने पुन: प्रश्न किया- भगवन् ! उस ज्ञान को कौन व्यक्ति प्राप्त कर सकता है ? कर्मयोगी श्रीकृष्ण ने उत्तर प्रदान किया कि जो श्रद्धावान हैं, वही ज्ञान के अधिकारी हैं ।' बिना श्रद्धा के ज्ञान नहीं हो सकता और न बिना श्रद्धा के धर्म ही हो सकता है ।" श्रद्धा धर्म की अनुगामिनी है । जहाँ धर्म १ नहि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते । २ ज्ञानादेव हि संसार- विनाशो ३ गाणं णरस्स सारो ४ अनुराग मंजरी पृ० २५ वियोगी हरि ५ श्रद्धावल्लभते ज्ञानं ६ उत्तराध्ययन २८ / ३० ७ रामचरितमानस - महाभारत भीष्म पर्व २८/३८, गीता ४ / ३८ - रुद्रहृदयोपनिषद्, श्लोक ३५ - आचार्य कुन्दकुन्द - गीता (५ / ३१) --तुलसीदास (७ / ९०/२) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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