Book Title: Sabhasyatattvarthadhigamsutra
Author(s): Umaswati, Umaswami, Khubchand Shastri
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 8
________________ विषय-सूची । จ%9 १४२ १४४ १४६ १४७ ३ तृतीय अध्याय। जीवतत्त्वके वर्णनमें जीवोंका आधारविशेषके | लोकका वर्णन १५८ प्रतिपादनमें अधोलोकका वर्णन १३७ लोक क्या है ? और वह कितने प्रकारका है ? नरक कितने हैं ? कहाँ हैं ? और कैसे हैं ? १३७ | तथा किस प्रकारसे स्थित है ? १५९ रत्नप्रभा शर्कराप्रभा आदि ७ नरकभूमियोंका- तिर्यग्लोकका संक्षिप्त स्वरूप वर्णन १३८ द्वीप और समुद्र किस प्रकारसे अवस्थित हैं ? और नरक कहाँ हैं ? जिनमें नारक जीवोंका निवास उनका प्रमाण कितना कितना है ? १६२ पाया जाता है | जम्बूद्वीपका आकार और उसके विष्कभ-विस्तारका नारक-जीवोंका विशेष स्वरूप प्रमाण १६३ लेश्यादिक अशुभ अशुभतर किस प्रकार हैं ? जम्बूद्वीपके सात क्षेत्र कौन कौनसे हैं ? १६५ नारकियोंके शरीरका वर्णन | जम्बूद्वीपको विभाजित ( अलग अलग) ,, ,, की उँचाईका वर्णन करनेवाले कुलाचलोंका वर्णन १६७ ,, की वेदनाका वर्णन पर्वतोंका अवगाह तथा ऊँचाई आदिका एवं जीवा ,, के पारस्परिक दुःखोंका वर्णन १४८ धनुष आदिका विशेष प्रमाण नारकीके क्षेत्रस्वभावकृत दुःख कैसा है ? द्वीपान्तरोंका वर्णन १७२ क्षेत्रकृत दुःख-वर्णन १७३ असुरोदीरित दुःखोंका वर्णन धातकीखंडका वर्णन १५१ असुरकुमार क्यों दुःख पहुँचाते हैं ? उनका | धातकीखंड जैसी रचना पुष्करार्ध है १७३ कौनसा प्रयोजन सिद्ध होता है ? १५३ मनुष्य कौन हैं ? और वे कहाँ कहाँ रहते हैं ? १७६ मनुष्योंके मूलभेद कौनसे हैं ? नारकी इतने दुःखोंको सहन कैसे करते हैं ? यंत्र १७७ पीडनादिसे उनका शरीर छिन्न भिन्न क्यों नहीं होता | आर्य मनुष्यके क्षेत्रार्य आदि ६ भेदोंका वर्णन १७७ है ? और उनकी मृत्यु क्यों नहीं होती है? १५४ म्लेच्छोंका वर्णन मनुष्यक्षेत्रकी कर्मभुमि अकर्मभूमिका वर्णन सातों ही नरकोंके नारकियोंकी आयुका उत्कृष्ट १८१ मनुष्योंकी उत्कृष्ट और जघन्य आयुका प्रमाण __ १८२ प्रमाण किस किस जातिके जीव ज्यादः से ज्यादः किस तिर्यंचोंकी उत्कृष्ट और जघन्य आयुका प्रमाण १८३ तिर्यचौकी भवस्थितिका प्रमाण किस नरक तक जा सकते हैं १८४ नरक पृथ्वियोंकी रचनामें विशेषता . १५७ ' इति तृतीयोऽध्यायः ॥ ३ ॥ १५० १५५ १५६ ४ चतुर्थ अध्याय। देवोंके भेद १८६ व्यन्तर ज्योतिष्क देवोंके आठ आठ भेद १९१ चार निकायोंमेंसे ज्योतिष्कदेवोका अस्तित्व इन्द्रोंकी संख्याका नियम १९१ प्रत्यक्ष है १८८ | पहले दो निकायोंकी लेश्याका वर्णन १९२ चार निकायके अन्तर्भेद १८८ देवोंके काम-सुखका वर्णन बारहवें स्वर्गतक इन्द्रादिककी कल्पना पाई जाती | अदेवीक (जिनके देवियाँ नहीं) और अप्रहै, इसलिये उसको कल्प कहते हैं, किन्तु यह वीचार देवोंका वर्णन १९६ कल्पना कितने प्रकारकी है ? १८९ भवनवासी देवोंके दश भेद १९७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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