Book Title: Sabhasyatattvarthadhigamsutra Author(s): Umaswati, Umaswami, Khubchand Shastri Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal View full book textPage 6
________________ , विषय-सूची। अवग्रहादिक कितने पदार्थोंको धारण करते हैं ? ३९ ज्ञान वस्तुके यथार्थ स्वरूपका परिच्छेदन नहीं बहु आदिक विशेषण किसके हैं ? ४० करते ? यह बात कैसे मालूम होवे ? ५९ अव्यक्तके विषय विशेषता क्या है ? | नयोंका वर्णन व्यंजनावग्रहमें और भी विशेषता है। नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजूसूत्र और शब्द, श्रुतज्ञानका स्वरूप नयके इन पाँच भेदोंमें और भी विशेषता है, ६१ मतिज्ञान और श्रुतज्ञानमें क्या विशेषता है ? नैगम नय आदि क्या पदार्थ हैं ? इस प्रश्नका उत्तर | नैगम नय आदिकको जैनप्रवचनसे भिन्न वैशेषिक अवधिज्ञानका स्वरूप आदि दर्शनशास्त्रवाले भी मानते हैं, अथवा ये भवप्रत्यय और क्षयोपशमनिमित्तकअवधिज्ञानके नय स्वतंत्र ही हैं ? अर्थात् ये नय अन्य सिद्धाभेदोंका स्वरूप ___ ४५ न्तका भी निरूपण करते हैं, अथवा यद्वा तद्वा, क्षयोपशमनिमित्तक किनके होता है ? उसमें भी युक्त अयुक्त कैसा भी पक्ष ग्रहण करके जैनप्र__ भव कारण है या नहीं ? वचनको सिद्ध करते हैं। इस शंकाका समाधान ६४ मनःपर्यायज्ञान और उसके भेद ऋजुमति, विपुलम- |जयोंके स्वरूपमें विरुद्धता प्रतीत होती है, क्योंकि तिका वर्णन | एक ही पदार्थमें विभिन्न प्रकारके अनेक मनःपर्यायज्ञानके दोनों भेद अतीन्द्रिय हैं, अध्यवसायोंकी प्रवृत्ति मानी है। परंतु यह बात दोनोंका विषयपरिच्छेदन मनःपर्यायोंको जानना कैसे बन सकती है ? इस शंकाका समाधान भी सरीखा ही है, फिर इनमें विशेषता किस जीव या नोजीव अथवा अजीव यद्वा नो अजीव बातकी है ? इस शंकाका समाधान ... ५. इस तरहसे केवल शुद्ध पदका ही उच्चारण किया अवधिज्ञान और मनःपर्यायज्ञानमें विशेषता क्या जाय, तो नैगमादिक नयों से किस नयके द्वारा क्या है, और किस किस अपेक्षासे है? ५१ | इन पदोंके कौनसे अर्थका बोधन कराया जाता किस किस ज्ञानकी किस किस विषयमें प्रव है ? इस शंकाका समाधान ५. किस किस ज्ञानमें कौन कौनसे नयकी प्रवृत्ति हुआ करती है? अवधिज्ञानका विषय कौन कौनसा नय किस किस ज्ञानका आश्रय मनःपर्यायज्ञानका विषय लेता है, ? केवलज्ञानका विषय | बाकी छह ज्ञानोंका आश्रय यह नय क्यों नहीं मतिज्ञानादि पाँच प्रकारके ज्ञानोमैसे एक सम- लेता? यमें एक जीवके कितने ज्ञान हो सकते हैं? ५५ पाँच कारिकाओं-श्लोकोंमें पहले अध्यायका . प्रमाणाभासरूप ज्ञानोंका निरूपण उपसंहार मिथ्यादृष्टिके सभी ज्ञान विपरीत होते हैं, क्योंकि वे । इति प्रथमोऽध्यायः ॥ १॥ सकती है? ३ २ द्वितीय अध्याय। जीवतत्त्वका स्वरूप ७५ । पारिणामिकभावोंके तीन भेद , औपशमिकादि जीवके भाव-भेदोंकी संख्या ७६ | जीवका उपयोग लक्षणका स्वरूप औपशमिकके दो भेदोंका स्वरूप ७७ लक्षणके उत्तरभेद क्षायिकके नौ भेद , ७७ लक्षणसे युक्त जीवद्रव्यके कितने भेद हैं ? क्षायोपशमिकभावके अठारह भेद ,, ७८ | संसारी जीवोंके उत्तरभेदोंका वर्णन औदयिकके इक्कीस भेद ७९ ' स्थावरोंके भेदोंका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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