Book Title: Rushidattras
Author(s): Jayvantasuri, Nipuna A Dalal, Dalsukh Malvania
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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दीक्षा लेतां पहेलां तेमणे केटलो अने कोनी पासे अभ्यास को हतो ते बिले शुजाणवा मळतु नथी, पण अमनी कृतिओ जोला अमनो अभ्यास सारो अवो हशे अम अनुमानी शकाय. मम्मट आचार्यना 'काव्यप्रकाश' उपर लेमणे संस्कृत टीका लखेली होईने सेओ संस्कृतना सारा विद्वान हता अने अलंकारशास्त्रना सिद्धांताथी सुपरिचित हता अन निःसंकोचपणे कही शकायकवि जयवंतसूरि पोताना गुरु विनयमंडन उपाध्यायनो उल्लेख पोतानी कृतिआमां करता रहे छ :
" वडतपगच्छ सोहाकरू हो, श्री धिनयमंडन गुरुराजि; रत्नत्रय आराधकी हो, जे जगि धर्मसहाय,
टक
जे जगि धर्मसहाय गुणाकर, सुविहितनई धुरि किध; तस सीस गुणसोभाग सुलामई, जयवंतसूरि प्रसिद्ध."
-ऋषिदत्ता रास ह. लि. प्रत, ला. द. भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर, क्रमांक १२१८, पृष्ठ ३१.
“श्री विनयभंडन उवझाय अनोपम, तपगच्छ गयणचंद, तसु सीस जयवंतसूरिवर, वाणी सुणतां हई आणंद."
-नेमराजुल बारमास वेल प्रबंध ह. लि. प्रत, ला. द. विद्यामंदिर-गुटको
" श्री विनयप्रमोदमुरु सीस, इम बुझबई वचन रसाल जयवंतपंडित बीनवेई, इम जापी रे विषयरस टालि."
-राजुलगीतानि-इतिस्पर्केन्द्रियजीत. ह. लि. प्रत, ला. द. विद्यामंदिर-गुटको.
" साधु सिरामणि जाणीइतु, श्री विनइमंडन उवझाया रे तास सीस गुण आगला तु, बहुला पंडितराया रे."
- श्री सीमंधरस्वामी लेख.
"फल लीउ नरभवतरुतणां, श्री विनयभंडण गुरु सीस जयवंत पंडित वीनवई, कर सफल धर्षिइ देह रे..?
___ -- गीतसंग्रह-इति अंतरंग गीत.
कवि जयवंतसूरिख पाताना ग्रंथ शृङ्गारमंजरीमा जे केटलीक विशेष माहिती आपी छे ते उपरथी नीचेनी बिगतो जाणी शकाय छे :
श्री विनयमंडन उपाध्यायने विवेकधीरगणि अने जयवंतसूरि बे शिष्या हता. अमां विवेकधीरगणि शिल्पशास्त्रमा अत्यंत निपुण हता अने तेमणे शत्रुजयतीर्थोद्धारना कार्यमां
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