Book Title: Report On Search For Sanskrit MSS Year 1880 1881
Author(s): F Kielhorn
Publisher: Government Central Book Depot

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Page 45
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 30 PALM-LEAF MSS. 47. Pindavisuddhi [पिण्डविशुद्धिः], in Prakrit, by JINA - VALLABHAGAŅI; with Commentary composed by YAŚODEVASÛRI in Samvat 1176. Stated to contain 2,800 Granthas. 142 leaves, numbered with the numeral figures on the right, and with letters on the left hand side. Each page is divided into three columns. Size of leaves 18} '2 inches. Lines on a page 4 to 5. Aksharas in a line 65 to 70. Date : Samvat 1300. Begins : ओं॥ नमो जिनाय ।। यदुदितलवयोगादेहिनः स्युः कृतार्था स्तमिह शुभनिधानं वर्द्धमानं प्रणम्य । स्वपरजनहितार्थ पिंडशुद्धविधास्ये जिनपतिमतनीत्या वृत्तिमल्पां सुवोधां ॥ १ ॥ तत्र चाहत्मणीतसमयसंपर्कावदातमतिजलधिर्भगवान् जिनवल्लभगणिः दुःखमाकालदोषादत्यंत हीयमानायुर्वृद्ध्यादीन् संप्रतिकालसाध्वादीनवलोक्य तदनुग्रहार्थं विस्तरवत् । पिंडैषणाध्ययनसारमादाय संक्षिप्ततरं पिंडविशुद्ध्याख्यप्रकरणं चिकीर्षुरादावेव विघ्नवातनिरासार्थ सिष्टसमयपरिपालनार्थं च इष्टदेवतास्तुतिरूपमत्यंताव्यभिचारि भावमंगलं श्रोतृजनप्रवृत्त्यर्थमभिधेयादि च प्रतिपादयन्निमां गाथामाह ॥ देविंदविंदवंदिय०. Ends: समाप्ता चेयं पिंडविशुद्धिप्रकरणवृत्तिः॥ ॥ ॥ ॥ २९०० ग्रंथागं प्रतिवर्णतो गणनया न्यूनं सहस्रत्रयं शतकयेनेति ॥ ॥ Here follow two verses, a great portion of which is effaced. - - - - - - - - - - श्रीमद्वीरगणिप्रभुः ॥ २॥ श्रीचंद्रसूरिनामा शिष्योभूत्तस्य भारतीमधुरः। आनंदितभव्यजनः संशितसंशुद्धसिद्धांतः ॥ ३॥ For Private and Personal Use Only

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