Book Title: Report On Search For Sanskrit MSS Year 1880 1881
Author(s): F Kielhorn
Publisher: Government Central Book Depot

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Page 48
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir PALM-LEAF MSS. 33 Fol. 26 आर्ये ।। श्रूयतामिदमादिशति स्म तत्रभवान् श्रीसंघः। यदद्य मरुमंडलकमलामुखमंडनकर्पूरपत्रांकुरथारापद्रपुरपरिष्कारकुमारविहारक्रोडालंकारश्रीवीरजिनेश्वरयात्रामहोत्सवप्रसंगसंगतं । अस्तोकं सामाजिकलोकं कस्यापि निस्तुषरसोपनिषन्निस्यंदिनी रूपकस्याभिनयदर्शनेन परमप्रमोदसंपदं संप्रापयेति || ............ ___ आर्ये अस्त्येव श्रीमोढवंशावतंसेन श्रीअजयदेवचक्रवर्तिचरणराजीवराजहंसेन मंत्रिधनदेवतनुजन्मना रुक्मिणीकुक्षिलालितेन ... परमाहतेन यशःपालकविना विनिम्मितं मोहराजपराजयो नाम नाटकं ॥ नटी ।। साकूतं ॥ अज्य मोहराजपराजउत्ति नाम पि दाव सुंदरं । ता किमित्थवनीयदित्ति सोदुभिछामि ।। सूत्र ।। सोत्साहं ॥ आर्ये समासतः श्रोत्रे श्रोतुमवधेहि तावत् ।। इह हि ॥ पद्मासन कुमारपालनृपतिर्जज्ञे सचंद्रान्वयी जैन धर्ममवाप्य पापशमनं श्रीहेमचंद्राद्गुरोः । निर्वीराधनमुज्झता विदधता द्यूतादिनिर्वासनं .. येनैकेन भटेन मोहनृपतिर्जिग्ये जगत्कंटकः ॥ ४ ॥ नटी ।। अज्य जदि एवं ता एदस्स राएसिणो परमवोधिसत्तस्स अचम्भुदचरिदेण विछाइदाई चिरंदणमहानरिंदललिदाई ॥ सूत्र ।। आर्य एवमेवैतत् । कः संदेहः ।। किंच ॥ अपरमपि किमत्र न प्रवेकमाकलयामः ।। यतः ।। थारापद्रपुरं निसर्गचतुरं चैत्येषु सर्वोत्तम किंवैतन्जिनमंदिरं रसमयं चौलुक्यवृत्तं स्वयं । जंघालः कविराजवर्त्मसु यशःपालः प्रवीणः कविमगृह्याः कुशलाः कलासु तदहो दिष्द्या प्रसन्नो विधिः ॥५॥ कर For Private and Personal Use Only

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