Book Title: Rajul
Author(s): Mishrilal Jain
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 2
________________ सम्पादकीय :-राजुल नेमीनाथ की बरात विवाह मण्डप के तोरण द्वार तक पहुँच ही रही थी कि रास्ते में निरीह प्राणियों का करुणक्रन्दन वेद्य गया। विवाह का विचार त्याग वन को चल दिये। उनकी जीवन धारा राग से. विराग की ओर भोग से ओर बढ़ चली। नेमीनाथ ने जैनेश्वरी दीक्षा धारण कर तपस्या में लीन हो गये। समाचार अन्त:पुर में राजकुमारी राजुल को मालूम हुए। मेंहदी लगवाती राजुलमति ने सिर उठाया। पूरा नगर सजा था। मेहमान आये हुए थे। विवाह मंडप में पवित्र बेदी सजी थी। राजकुमारी से उसके माता पिता ने कह्म, बेटी शोक न करो। लग्न बेला टली नहीं। हम किसी और राजकुमार के संग तेरा विवाह कर देंगे। पिताजी। हाँ। स्त्री के जीवन में पति तो एक ही होता है, ना जाने मेरे किस जन्म का पाप कर्म सामने आया कि मेरे पति ने मुझे त्याग दिया। अब मैं दूसरा पाप नहीं करना चाहती। वे मेरे पति हैं और उनके चरणों में ही मेरा स्थान है। मेरा मार्ग भी वही है जो उनका है। जिस राह से वे गये हैं उसी रास्ते से जाना होगा। यह कहकर राजकुमारी राजुल ने अपना श्रृंगार त्याग दिया, घर त्याग दिया और गिरीनार पर्वत की ओर चल दी। अथक प्रयत्न करने पर वह दूसरे से विवाह करने के प्रस्ताव से सहमत नहीं हुई और स्वामी नेमिनाथ के समीप गिरीनार पर्वत पर पहुँच कर उन्हीं से साध्वी दीक्षा ग्रहण कर तपस्वनी बन गई। राजमति ने एक वार मन से निश्चित किए हुए पति के अतिरिक्त किसी से विवाह न कर अपने पति का अनुगमन करके महान सती का आदर्श उपस्थित किया। जैन धर्म में जिस तरह नेमीनाथ तीर्थंकर को स्मरण किया जाता है उसी प्रकार २४ महासतियों में राजुल का पवित्र नाम भी प्रात: स्मरणीय है। नारी तपश्चरण करने में स्वतंत्र है। त्याग और साधना के मार्ग में उच्च स्थान प्राप्त है। आज की नारीयों को पुरुष की दासता को छोड़ नारी समाज की दर्दशा का नाश करना है. उसके पतन को रोकना है तो अवश्य ही संसार के त्याग मार्ग पर आरुढ होना चाहिए। ताकि हम सभी नेमी-राजुल के समान आदर्श उपस्थित कर सकें। नारी का जीवन समाज में प्रतिष्ठित और धर्म क्षेत्र में परम पूज्य हो। आशा है। प्रकाशक : आचार्य धर्म श्रत ग्रन्थमाला. गोधासदन अलसीसर हाउस संसार चंद रोड जयपुर सम्पादक : ब्र. धर्मचंद शास्त्री, ज्योतिषाचार्य प्रतिष्ठाचार्य जैन चित्र कथा कार्यालय लेखक : मिश्रीलाल जी एडवोकेट दि. जैन मंन्दिर गुलाब बाटिका चित्रकार : मधु जैन बम्बई दिल्ली सहारनपुर रोड दिल्ली (U.P.) वर्ष २ अंक १७ मूल्य ६.०० जुलाई १९८९ स्त्वाधिकारी/मुद्रक प्रकाशक तथा सम्पादक धर्मचंद शास्त्री द्वारा जुबली प्रिन्टर्स से छप कर धर्मचंद शास्त्री ने जयपुर से प्रकाशित की। 0 जैन चित्र कथाओं के प्रकाशन के इस पावन पुनीत महायज़ में हमें सहयोग प्रदान करेंआजीवन सदस्य 1501/= __ संरक्षक 5001/= परमसंरक्षक 11111/=

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