Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 4
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur

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Page 11
________________ १८२२, १८६३, तथा १८७ में यही पट्टाभिषेक' हुआ था। इस प्रकार इनका इस मन्दिर से करीब १०० वर्ष तक सीधा सम्पर्क रहा । प्रारम्भ में यहां का शास्त्र भंडार मारलं की देखरेख में रहा इनाङ्गिो शास्त्रों के संग्रह में दिन प्रतिदिन वृद्धि होती रही । यहां शास्त्रों की लिखने लिखवाने की भी अच्छी व्यवस्था थी इसलिये श्रावकों के अनुरोध पर यहीं ग्रंथों की प्रतिलिपियां भी होती रहती थी। भट्टारकों का जब प्रभाव क्षीण होने लगा तथा जब वे साहित्य की ओर उपेक्षा दिखलाने लगे तो यहां के भंडार की व्यवस्था श्रावकों ने संभाल ली । लेकिन शास्त्र भंडार में संग्रहीत ग्रंथों को देखने के पश्चात् यह पता चलता है कि श्रावकों ने शास्त्र भंडार के ग्रंथों की संख्या वृद्धि में विशेष अभिरुचि नहीं दिखलाई और उन्होंने भंडार को उसी अवस्था में सुरक्षित रखा। हस्तलिखित ग्रंथों की संख्या मंदार में शास्त्रों की फुल संख्या २२५७ तथा गुटकों की संख्या ३०८ है। लेकिन एक एक गुट के में बहुत से प्रथों का संग्रह होता है इसलिये गुटकों में १८०० से भी अधिक ग्रंथों का संग्रह है। इस प्रकार इस भंडार में चार हजार ग्रंथों का संग्रह है। भक्तामर स्तोत्र एवं तत्वार्थसूत्र की एक एक नाडपत्रीय प्रति को छोड़ कर शेष सभी ग्रंथ कागज पर लिखे हुये हैं । इसी भंडार में कपड़े पर लिखे हुये कुछ जम्बूद्वीप एवं अढाईद्वीप के चित्र एवं यन्त्र, मंत्र आदि का उल्लेखनीय संग्रह हैं। मंडार में महाकवि पुष्पदन्त कृत जसहर चरिउ ( यशोधर चरित) की प्रति सबसे प्राचीन है जो संवन १४०७ में चन्द्रपुर दुर्ग में लिखी गई थी। इसके अतिरिक्त यहां १५ वी, १६ वी, १७ वी एवं १८ वीं शताब्दी में लिखे हुये प्रथों की संख्या अधिक है। प्राचीन प्रतियों में गोम्मटसार जीवकांड, तत्त्वाथ सूत्र (सं० १४५८ ) द्रव्यसंग्रह वृत्ति ( ब्रह्मदेव-सं० १६३५ ), उपासकाचार दोहा (सं० १५५५), धर्मसंग्रह श्रावकाचार ( संवत् १५४२ ) श्रावकाचार ( गुणभूषणाचार्य संवत् १५६२,) समयसार ( १५६४), विद्यानन्दि कृत अष्टसहस्त्री ( १७६१ ) उत्तरपुराण टिप्पण प्रभाचन्द (सं० १५७५ ) शान्तिनाथ पुराण ( अशगकवि सं. १५५२ ) ऐमिरगाह चरिए ( लक्ष्मण देव सं. १६३६ ) नागकुमार चरित्र ( मल्लिषेण कधि सं. १५६४) वशंग चरित्र (वर्तमान देव सं. १५६४) नवकार श्रावकाचार (सं० १६१२) धादि सैकड़ों मंथों की उल्लेखनीय प्रतियां हैं। ये प्रतियां सम्पादन कार्य में बहुत लाभप्रद सिद्ध हो सकती हैं। विभिन्न विषयों से सम्बन्धित ग्रंथ शास्त्र भंडार में प्रायः सभी विषयों के प्रथों का संग्रह है। फिर भी पुराण, चरित्र, काव्य, कथा, व्याकरण, आयुर्वेद के ग्रंथों का अच्छा संग्रह है। पूजा एवं स्तोत्र के ग्रंथों की संख्या भी पर्याप्त १. भट्टारक पट्टायलीः भामेर शास्त्र भंडार जयपुर वेष्टन सं० १७२४

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