Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 4
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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ग्रंथों का विषयानुसार वर्गीकरण ग्रंथ सूची को अधिक उपयोगी बनाने के लिये नथों का विषयानुसार वर्गीकरण करके उन्हें २५ विषयों में विभाजित किया गया है । विविध विषयों के ग्रंथों के अध्ययन से पता चलता है कि जैन प्राचार्यों ने प्रायः सभी विषयों पर अंध लिखे हैं । साहित्य का संभवतः एक भी ऐसा विषय नहीं होगा जिस पर इन विद्वानों ने अपनी कलम नहीं चला ई हो । एक ओर जहां इन्होंने धार्मिक एवं श्रागम साहित्य लिख कर भंडारों को भरा है यहां दूसरी ओर काव्य, चरित्र, पुराण, कथा कोश आदि लिख कर अपनी विद्वात्ता की छाप लगाई है । श्रावकों एवं सामान्य जन के हित के लिये इन प्राचार्यों एवं विद्वानों ने सिद्धान्त एवं श्राचार शास्त्र के सूक्ष्म से सूक्ष्म विषय का विश्लेषण किया है। सिद्धान्त की इतनी गहन एवं सूक्ष्म चर्चा शायद ही अन्य धर्मों में मिल सके। पूजा साहित्य लिखने में भी ये किसी से पीछे नहीं रहे । इन्होंने प्रत्येक विषय की पूजा लिखकर श्रावकों को इनको जीवन में उतारने की प्रेरणा भी की है। पूजाओं की जयमालाओं में कभी कभी इन विद्वानों ने जैन धर्म के सिद्धान्तों का बली उत्तमदा से वर्णन किया है । ग्रंथ सूची के इसही भाग में १५०० से अधिक पूजा ग्रंथों का उल्लेख हुआ है।
धार्मिक साहित्य के अतिरिक्त लौकिक साहित्य पर भी इन आचार्यों ने खूब लिखा है। तीर्थकरों एवं शलाकाओं के महापुरुषों के पावन जीवन पर इनके द्वारा लिखे हुये बड़े बड़े पुराण एवं काव्य ग्रंथ मिलते हैं । ग्रंथ सूची में प्रायः सभी महत्वपूर्ण पुराण साहित्य के ग्रंथ आगये हैं । जैन सिद्धान्त एवं श्राचार शास्त्र के सिद्धामी को कथाओं के रूप में वर्णन करने में जैनाचार्यों ने अपने पारिष्टत्य का अच्छा प्रदर्शन किया है । इन भंडारों में इन विद्वानों द्वारा लिया हुआ कथा साहित्य प्रचुर मात्रा में मिलता है । ये कथायें रोचक होने के साथ साथ शिक्षाप्रद भी हैं । इसी प्रकार व्याकरण, ज्योतिप एवं आयुर्वेद पर भी इन भंडारों में अच्छा साहित्य संग्रहीत है । गुटकों में आयुर्वेद के नुसखों का अच्छा संग्रह है। सैकड़ों ही प्रकार के नुसखे दिये हुये हैं जिन पर खोज होने की अत्यधिक श्रावश्यकता है ।। इस बार हमने फागु, रासो एवं बेलि साहित्य के मंथों का अतिरिक्त वर्णन दिया है। जैन आचार्यों ने हिन्दी में छोटे छोटे सैकड़ों रासो ग्रंथ लिखे हैं जो इन भंडारों संग्रहीत हैं। अकेले ब्रह्म जिनदास के ४० से भी अधिक रासो ग्रंथ मिलते हैं । जैन भंडारों में १४ वीं शताब्दी के पूर्व से रासो ग्रंथ मिलने लगते हैं। इसके अतिरिक्त अध्ययन करने की दृष्टि से संग्रहीत किया ये इन भंडारों में जनेवर विद्वानों के काट्य, नाटक, व.था, ज्योतिष,
आयुर्वेद, कोष, नीतिशास्त्र, व्याकरण आदि विषयों के ग्रंथों का भी अच्छा संकलन मिलता है । जैन विद्वानों ने कालिदास, माघ, भारवि आदि प्रसिद्ध कवियों के काव्यों का संकलन ही नहीं किया किन्तु उन पर बिस्तृत टीकायें भी लिखी है। प्रथ सूची के इसी भाग में ऐसे कितने ही काव्यों का उल्लेख आया है । भंडारों में ऐतिहासिक रचनायें भी पर्याप्त संख्या में मिलती हैं। इनमें भट्टारक पट्टावलियां, भट्टारकों के छन्द, गीत, चोमासा घणन, वंशोत्पत्ति वर्णन, देहली के बादशाहों एवं अन्य राज्यों के राजाओं के वर्णन एवं नगरों की बसापत का वर्णन मिलता है ।