Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 4
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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सीता रा . श्री सिद्धान्त उपदेशमाला रतनगुन मंडित करी । सच सुकवि कंटा करदु, भूषित सुमनसोभित विधिकरी । जिम सूर्य के प्रकास सेती . तम बितान विलात है । इमि पढ़े परमागम सुयांनी विदत रुचि अवदात है ।। दोहा
: .. सुखविधान नरवरपती, छत्रस्यंघ अवतंस ।
कीरति वंत प्रवीन मति, राजत कूरम वंश ॥१६४॥ " जाकै राज सुचैन सौं, विना ईति अरु भीति । रच्यो प्रथ सिद्धान्त सुभ, यह उपगार सुनीति ॥१६५।। सत्रहर अरु दएनवै, संवत् विक्रमराज ।। भादय बुदिएकादसी, शनिदिन सुविधि समाज ॥१६॥ पंथ कियो पूरन सुविधि नरवर नगर मंझार । जै समझ याको अरथ ते पावै भवपार ॥१६७।।
चौबोला साजन यदि की तीज आदि सौ प्रारंभ्यो यह प्रध। भादव वदि एकादशि तक लौ परमपुन्य को पंथ ।। एक महिना आठ दिना मैं कियौ समापत प्रांनि । पदै गुने प्रकट चिंतामनि बोध सदा सुख दानि ॥१८॥
इति उपदेशसिद्धांतरत्नमाला भाषा ।। ६ गोम्मटसार टीका
गोम्मटसार की यह संस्कृत टीका श्रा० सकलभूषण द्वारा विरचित है। टीका के प्रारम्भ में लिपिकार ने टीकाकार के विषय में लिखा है वह निम्न प्रकार है:
"अथ गोम्मटसार मध गाथा बंध टीका करणाटक भाषा में है उसके अनुसार सकलभूषण मैं संस्कृत टीका बनाई सो लिखिये है ।
टीका का नाम मन्दप्रबोधिका है जिसका टीकाकार ने मंगलाचरण में ही उल्लेख किया है: