Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 4
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
View full book text
________________
-Ps
विविध भाषाओं में रचित साहित्य
राजस्थान के शास्त्र भंडारों में उत्तरी भारत की प्रायः सभी भाषाओं के ग्रंथ मिलते हैं । इनमें संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, हिन्दी, राजस्थानी एवं गुजराती भाषा के मंथ मिलते हैं। संस्कृत भाषा में जैन विद्वानों ने वृहद् साहित्य लिखा है । आ० समन्तभद्र, कलंक, विद्यानन्द, जिनसेन, गुणभद्र,
मान भट्टारक, सोमदेव, वीरनन्दि, हेमचन्द्र, आशाधर, सकलकीर्ति आदि सैकड़ों आचार्य एवं विद्वान् हुये हैं जिन्होंने संस्कृत भाषा में विविध विषयों पर सैकड़ों प्रथ लिखे हैं जो इन भंडारों में मिलते हैं। यही नहीं इन्होंने जैन विद्वानों द्वारा लिखे हुये काव्य एवं नाटकों की टीकायें भी लिखी है । संस्कृत भाषा में लिखे हुये तिलक चम्पू, बीरनन्दि का चन्द्रप्रभकाव्य, वद्ध मानदेव का वरांगचरित्र आदि ऐसे काव्य हैं जिन्हें किसी भी महाकाव्य के समकक्ष बिठाया जा सकता है । इसी तरह संस्कृत भाषा में लिखा हुआ जैनाचार्यों का दर्शन एवं न्याय साहित्य भी उच्च कोटि का है ।
प्राकृत एवं अपभ्रंश भाषा के क्षेत्र में तो केवल जैनाचार्यों का ही अधिकांशतः योगदान है । इन भाषाओं के अधिकांश ग्रंथ जैन विद्वानों द्वारा लिखे हुये ही मिलते हैं । ग्रंथ सूची में अपभ्रंश में एवं प्राकृत भाषा में लिखे हुये पर्याप्त ग्रंथ आये हैं । महाकवि स्वयंभू, पुष्पदंत, समरकीर्ति, नयनन्दि जैसे महाकवियों का अपभ्रंश भाषा में उच्च कोटि का साहित्य मिलता है। अब तक इस भाषा के १०० से भी अधिक ग्रंथ मिल चुके हैं और वे सभी जैन विद्वानों द्वारा लिखे हुये हैं ।
१
इसी तरह हिन्दी एवं राजस्थानी भाषा के ग्रंथों के संबंध में भी हमारा यही मत है कि इन भाषा की जैन विद्वानों ने खूब सेवा की है। हिन्दी के प्रारंभिक युग में जब कि इस भाषा में साहित्य निर्माण करना विद्वत्ता से परे समझा जाता था, जैन विद्वानों ने हिन्दी में साहित्य निर्माण करना प्रारम्भ किया था | जयपुर के इन भंडारों में हमें १३ वीं शताब्दी तक की रचनाएं मिल चुकी हैं। इनमें जिनदत्त चौपाई सर्व प्रमुख है जो संवत् १३५४ (१२६७ ई.) में रची गयी थी। इसी प्रकार भ० सकलकीर्ति, ब्रह्म जिनदास, भट्टारक भुवनकीर्ति, ज्ञानभूषण, शुभचन्द्र, छोहल, बूचरीज, ठक्कुरसी, पल्हू आदि विद्वानों का बहुतसा प्राचीन साहित्य इन भंडारों में प्राप्त हुआ है। जैन विद्वानों द्वारा लिखे हुये हिन्दी एवं राजस्थानी साहित्य के अतिरिक्त जैनेतर विद्वानों द्वारा लिखे हुये ग्रंथों का भी यहां अच्छा संकलन है । पृथ्वीराज कृत कृष्णरुक्मिणी बेलि बिहारी सतसई, केशवदास की रसिकप्रिया, सूर एवं कबीर आदि कवियों के हिन्दीपद, जयपुर के इन भंडारों में प्राप्त हुये हैं । जैन विद्वान कभी कभी एक ही रचना में एक से अधिक भाषाओं का प्रयोग भी करते थे । धर्मचन्द्र प्रबन्ध इस दृष्टि से अच्छा उदाहरण कहा जा सकता है ।
१. देखिये कासलीवालजी द्वारा लिखे हुये Jain Granth Bhandars in Rajsthan का चतुर्थ परिशिष्ट ।