Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 4
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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समकालीन विद्वानों में से नवलराम, गुमानीराम, जयचन्द छाबड़ा, डालूराम | मन्नालाल बिन्दूका, स्वरूपचन्द्र बिलाला के नाम उल्लेखनीय हैं और संभवतः इन्हीं विद्वानों के सहयोग से वे ग्रंथों का इतना संग्रह कर सके होंगे। प्रतिमासांत चतुर्दशी व्रतोद्यापन सं. १८७७, गोम्मटसार सं. १६, पंचतन्त्र सं. १ क्षेत्र चूडामणि सं० १८६१ आदि ग्रंथों की प्रतिलिपियां करवा कर इन्होंने भंडार में विराजमान की थी।
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भंडार में अधिकांश संग्रह १६ व २० वीं शताब्दी का है किन्तु कुछ ग्रंथ १६ वीं एवं १७ वीं शताब्दी के भी हैं । इनमें निम्न ग्रंथों के नाम उल्लेखनीय हैं ।
पूर्णचन्द्राचार्य
पं० देव
अमरकीर्ति
पूज्यपाद
पुष्पदन्त
ब्रह्मनेमिदत्त
जोधराज
उपसर्ग हरस्तोत्र लब्धिविधानकथा
पट्कर्मोपदेशरत्नमाला सर्वार्थसिद्धि
यशोधर चरित्र
नेमिनाथ पुराण
प्रवचनसार भाषा
चिन्तामणिजययाल
सीमन्धर स्तवन
गीत एवं आदिनाथ स्तवन
अज्ञात कृतियों में तेजपाल
कृत सुकुमाल चरित्र भाषा ( २० का ० १९१५ ) के नाम विशेषतः उल्लेखनीय हैं ।
८. दि० जैन मन्दिर गोधों का जयपुर (छ भंडार !
. का ० १५५३
सं० १६०७
सं० १६२२
सं० १६२५
सं० १६३०
सं० १६४६
सं० १७३०
ठक्कुर कवि
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पल्द कवि
सम्पएिश ) तथा हरचंद गंगवाल
गोधों का मन्दिर घी वालों का रास्ता, नागोरियों का चौक जौहरी बाजार में स्थित है । इस मन्दिर का निर्माण १८ वीं शताब्दी के अन्त में हुआ था और मन्दिर निर्माण के पश्चात ही यहां शास्त्रों का संग्रह किया जाना प्रारम्भ हो गया था। बहुत से ग्रंथ यहां सांगानेर के मन्दिरों में से भी लाये गये । वर्तमान में यहां एक सुव्यवस्थित शास्त्र भंडार है जिसमें ६९६ हस्तलिखित ग्रंथ एवं १०२ गुटके हैं। भंडार में पुराण, चरित कथा एवं स्तोत्र साहित्य का अच्छा संग्रह है। अधिकांश ग्रंथ १७ वीं शताब्दी से लेकर १६ वीं शताब्दी तक के लिखे हुये हैं। शास्त्र भंडार में व्रतकथाकोश की संवत् १५८६ में लिखी हुई प्रति सबसे प्राचीन है । यहां हिन्दी रचनाओं का भी अच्छा संग्रह है । हिन्दी की निम्न रचनायें महत्वपूर्ण हैं जो अन्य भंडारों में सहज ही में नहीं मिलती हैं ।
हिन्दी
33
1
संस्कृत
33
33
अपभ्रंश
संस्कृत
35
संस्कृत
हिन्दी
१६ वीं शताब्दी
31
12