Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 4
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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-१२सा शास्त्र भंडार है जिसमें केवल १०८ हस्तलिखित प्रथ हैं। इनमें ७५ हिन्दी के तथा शेष संस्कृत भाषा के ग्रंथ हैं 1 संग्रह सामान्य है तथा प्रतिदिन स्वाध्याय के उपयोग में आने वाले ग्रंथ हैं । शास्त्र भंडार करीव १४० वर्ष पुराना है। कालूरामजी साह, यहां उत्साही सज्जन हो गये हैं जिन्होंने कितने ही ग्रंथ लिखवाकर शास्त्र, भंडार में विराजमान किये थे । इनके द्वारा लिखवाये हुये ग्रंथों में पं. जयचन्द्र छाबड़ा कृत झामार्णव भाषा (सं. १८२२) खुशालचन्द कृत ग्रिलोकसार भाषा (सं०१५८४) दौलतरामजी कासलीवाल कृत आदि पुराण भाषा सं. १८८३ एवं छीतर टोलिया कृत होलिका चरित (सं. १८:३) के नाम उल्लेखनीय हैं। मंडार व्यवस्थित है।
५. शास्त्र भंडार दि. जैन नया मन्दिर वैराठियों का जयपुर (घ भंडार ) ___'घ' भंडार जौहरी बाजार मोतीसिंह भोमियों के रास्ते में स्थित नये मन्दिर में संग्रहीत है। यह मन्दिर बराठियों के मन्दिर के नाम से भी प्रसिद्ध है। शास्त्र भंडार में १५० हस्तलिखित ग्रंथ है जिनमें वीरनन्दि ल चन्द्रप्रम चरित के प्रति सबसे प्राचीन है ! इसे संवत् १५२४ भादवा बुदी ७ के दिन लिखा गया था । शास्त्र संग्रह की दृष्टि से भंडार छोटा ही है किन्तु इसमें कितने ही ग्रंथ उल्लेखनीय है। प्राचीन हस्तलिखित प्रनियों में गुणभद्राचार्य कृत उत्तर पुराण (सं० १६०६,) ब्रह्मजिनदास क्रस हरिवंश दुराण (सं० १६४१,) दीपचन्द्र कृत ज्ञानदर्पण एवं लोकसेन कृत दशलक्षणकथा की प्रतियां उल्लेखनीय हैं। श्री राजहंसोपाध्याय की पच्छ्यधिक शतक की टीका संवन् १५७६ के ही अगहन मास की लिखी हुई है। ब्रह्मजिनदास कृत अठावीस मूलगुणरास एवं दान कथा (हिन्दी) तथा ब्रह्म अजित का हंसतिलकरास उल्ले. खनीय प्रतियों में हैं। भंडार में ऋषिमंदल स्तोत्र, ऋषिमंडल पूजा, निर्वाणकान्ड, अष्टान्हिका जयमाल की स्वर्णाक्षरी प्रतियां हैं। इन प्रतियों के वार्डर सुन्दर बेल बूटों से युक्त हैं तथा कला पूर्ण हैं । जो बेल एक बार एक पत्र पर आगई वह फिर आगे किसी पत्र पर नहीं आई है । शास्त्र भंडार सामान्यतः व्यवस्थित है।
६. शास्त्र भंडार दि. जैन मन्दिर संधीजी जयपुर ( उ भंडार )
संधीजी का जैन मन्दिर जयपुर का प्रसिद्ध एवं विशाल मन्दिर है । यह चौकड़ी मोदीखाना में महावीर पार्क के पास स्थित है । मन्दिर का निर्माण दीवान झू'थारामजी संघी द्वारा कराया गया था। ये महाराज जयसिंहजी के शासन काल में जयपुर के प्रधान मंत्री थे । मन्दिर की मुख्य चंवरी में सोने एवं काच का कार्य हो रहा है । यह बहुत ही सुन्दर एवं कला पूर्ण है । काच. का ऐसा अच्छा कार्य बहुत ही कम मन्दिरों में मिलता है।
मन्दिर के शास्त्र भंडार में हस्तलिखित ग्रंथों का संग्रह है । सभी मंथ कागज पर लिखे हुये हैं। अधिकांश नथ १८ वी एवं १६ वीं शताब्दी के लिखे हुये हैं। सबसे नवीन प्रथ णमोकारकाव्य है जो संवत् १६६५ में लिखा गया था। इससे पता चलता है कि समाज में अब भी ग्रंथों की प्रति