Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3 Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur View full book textPage 8
________________ का शास्त्र भण्डार, छोटे दीवान जी के मन्दिर का शास्त्र भण्डार, संघीजी के मन्दिर का शास्त्र भण्डार, झाबड़ों के मन्दिर का शास्त्र भण्डार, जोबनेर के मन्दिर का शास्त्र भण्डार, नया मन्दिर का शास्त्र भण्डार आदि कुछ ऐसे शास्त्र भण्डार हैं जिनमें संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, हिन्दी, राजस्थानी, भाषाओं के महत्त्व पूर्ण साहित्य का संग्रह है। उक्त भण्डारों की प्रायः सभी की नथ सूचियां तैयार की जा चुकी है जिससे पता चलता है कि इन भण्डारों में कितना अपार साहित्य संकलित किया हुआ है। राजस्थान के प्रय भण्डारों के छोटे से अनुभव के आधार पर यह लिखा जा सकता है कि अपभ्रंश एवं हिन्दी की विभिन्न धाराओं का जितना अधिक साहित्य जयपुर के इन भण्डारों में संग्रहीत है उतना राजस्थान के अन्य भण्डारों में संभवतः नहीं है । इन ग्रन्थ भण्डारों की ग्रन्थ सूचियां प्रकाशित हो जाने के पश्चात विद्वानों को इस दिशा में अधिक जानकारी मिल सकेगी। प्रथ सूची का तृतीय भाग विद्वानों के समक्ष है । इसमें जयपुर के दो प्रसिद्ध भण्डार-बधीचन्दजी के मन्दिर का शास्त्र भण्डार एवं ठोलियों के मन्दिर का शास्त्र भण्डार-के ग्रंथों का संक्षिप्त परिचय उपस्थित किया गया है। ये दोनों भण्डार नगर के प्रसिद्ध एवं महत्त्वपूर्ण भण्डारों में से है। बधीचन्दजी के मन्दिर का शास्त्र भण्डार बधीचन्दजी का दि जैन मन्दिर जयपुर के जैन पञ्चायती मन्दिरों में से एक मन्दिर है। यह मन्दिर गुमानपन्थ के नाम्नाय का है । गुमानीरामजी महापंडित टोडरमलजी के सुपुत्र थे जिन्होंने अपना अलग ही गुमानपन्य चलाया थ । यह पन्थ दि जैनों के तेरहपन्थ से भी अधिक सुधारक है तथा भहारको द्वारा प्रचलित शिथिलाचार का कट्टर विरोधी है । यह विशाल एवं कलापूर्ण मन्दिर नगर के जौहरी बाजार के घी बालों के रास्ते में स्थित है। काफी समय तक यह मन्दिर पं० टोडरमलजी, गुमानीरामजी की साहित्यिक प्रवृत्तियों का केन्द्रस्थल रहा है । पं. टोडरमलजी ने यहां बैठकर गोमट्टसार, श्रात्मानुशासन जैसे महान प्रयों की हिन्दी भाषा एवं मोक्षमार्गप्रकाश जैसे महत्त्वपूर्ण सैद्धान्तिक अन्य की रचना की थी । आज भी इस भण्डार में मोक्षमार्गप्रकाश, आत्मानुशासन एवं गोमसार भाषा की मूल प्रतियां जिनको पंडितजी ने अपने हाथों से लिखा था, संग्रहीत हैं। पञ्चायती मन्दिर होने के कारण तथा जयपुर के विद्वानों की साहित्यिक प्रगतियों का केन्द्र होने के कारण यहाँ का शास्त्र भण्डार अधिक महत्त्वपूर्ण है। यहाँ संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश हिन्दी, राजस्थानी पधं ढूढारी भाषाओं के ग्रन्थों का उत्तम संग्रह किया हुआ मिलता है। इन हस्तलिम्वित ग्रन्थों की संख्या १२७८ है । इनमें १६२ गुटके तथा शेष १११६ मथ हैं । हस्तलिखित प्रथ सभी विषय के है जिनमें सिद्धान्त, धर्म एवं श्राचार शास्त्र, अध्यात्म, पूजा, स्तोत्र आदि विषयों के अतिरिक्त, कान्य, चरित, पुराण, कथा, नीतिशास्त्र, सुभाषित आदि विषयों पर भी अच्छा संग्रह है । लेखक प्रशस्ति संग्रह में ४० लेग्यक प्रशस्तियां इसी भण्डार के अन्यों पर से दी गयी हैं। इनसे पता चलता है कि भण्डार मेंPage Navigation
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