Book Title: Punya ka Fal
Author(s): Dharmchand Shastri
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 2
________________ सम्पादकीय मानव का जीवन नदी की धारा की तरह है। कभी तेज गति कभी मन्द गति, कभी उतार कभी चढ़ाव । कभी सरल सीधी चाल कभी सर्प की तरह वक्र गति, सुख, दुख, पुण्य, पाप, हर्ष, विशाद का धूप छांही खेल ही जीवन का क्रम है। जो इस खेल में खिलाड़ी की तरह स्वस्थ मन, स्वस्थ चित्त बना कर खेलता है उसका जीवन सफल हो जाता है। पुण्य पाप में व्यक्ति दु:खी, सुखी होता है। आज का मानव धीरज खो बैठा है। प्रतीक्षा नहीं करना चाहता वह तो तुरन्त फल चाहता है। मानव को अच्छे कार्य करने चाहिए जिससे स्वयं सुख की अनुभूति कर सके तथा दूसरे की सुख की अनुभूति करेगा तो पुण्य को प्राप्त करेगा। जैन चित्र कथाएं जैन चित्र कथा Vikrant Patni JHALRAPATAN कृति आशीर्वाद परम पूज्या गणिनी सुपार्श्वमती माता जी प्रकाशक : आचार्य धर्मश्रुत ग्रन्थ माला : पुण्य का फल : सर्वाधिकार सुरक्षित सम्पादक ब्र. धर्मचन्द शास्त्री प्रतिष्ठाचार्य शब्दाकन : ब्र. धर्मचन्द शास्त्री प्रतिष्ठाचार्य पुष्प नं : 42 मूल्य 20.00 प्राप्ति स्थान जैन मंदिर गुलाब वाटिका लोनी रोड़ जिला गाजियाबाद (उ.प्र.) 914-600074 S.T.D.0575-4600074

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 ... 35