Book Title: Punchaastikaai Sangrah
Author(s): Kundkundacharya, 
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 236
________________ कहानजैनशास्त्रमाला ] Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates नवपदार्थपूर्वक–मोक्षमार्गप्रपंचवर्णन अथ निर्जरापदार्थव्याख्यानम्। संवरजोगेहिं जुदो तवेहिं जो चिट्ठदे बहुविहेहिं । कम्माणं णिज्जरणं बहुगाणं कुणदि सो णियदं ।। १४४ ।। संवरयोगाभ्यां युक्तस्तपोभिर्यश्चेष्टते बहुविधैः । कर्मणां निर्जरणं बहुकानां करोति स नियतम् ।। १४४ ।। निर्जरास्वरूपाख्यानमेतत् । शुभाशुभपरिणामनिरोधः संवरः, शुद्धोपयोगो योगः । ताभ्यां युक्तस्तपोभिरनशनावमौदर्यवृत्तिपरिसंख्यानरसपरित्यागविविक्तशय्यासनकायक्लेशादिभेदाद्बहिरङ्गैः स्वाध्यायव्युत्सर्गध्यानभेदादन्तरङ्गैश्च बहुविधैर्यश्चेष्टते स खलु प्रायश्चित्तविनयवैयावृत्त्य अब निर्जरापदार्थका व्याख्यान है । गाथा १४४ [ २०७ अन्वयार्थः- [ संवरयोगाभ्याम् युक्तः ] संवर और योगसे [ शुद्धोपयोगसे ] युक्त ऐसा [यः] जो जीव [बहुविधैः तपोभि: चेष्टते ] बहुविध तपों सहित प्रवर्तता है, [ सः ] वह [ नियतम् ] नियमसे [ बहुकानाम् कर्मणाम् ] अनेक कर्मोंकी [ निर्जरणं करोति ] निर्जरा करता है । टीका:- यह, निर्जराके स्वरूपका कथन है । संवर अर्थात् शुभाशुभ परिणामका निरोध, और योग अर्थात् शुद्धोपयोग; उनसे [ -संवर और योगसे ] युक्त ऐसा जो [ पुरुष ], अनशन, अवमौदर्य, वृत्तिपरिसंख्यान, रसपरित्याग, विविक्तशय्यासन तथा कायक्लेशादि भेदोंवाले बहिरंग तपों सहित और प्रायश्चित्त, विनय, वैयावृत्त्य, स्वाध्याय, व्युत्सर्ग और ध्यान ऐसे भेदोंवाले अंतरंग तपों सहित - इस प्रकार बहुविध 'तपों सहित १। जिस जीवको सहजशुद्धस्वरूपके प्रतपनरूप निश्चय-तप हो उस जीवके, हठ रहित वर्तते हुए अनशनादिसम्बन्धी भावोंको तप कहा जाता है। उसमें वर्तता हुआ शुद्धिरूप अंश वह निश्चय-तप है और शुभपनेरूप अंशको व्यवहार - तप कहा जाता है । [ मिथ्यादृष्टिको निश्चयतप नहीं है इसलिये उसके अनशनादिसम्बन्धी शुभ भावोंको व्यवहार - तप भी नहीं कहा जाता ; क्योंकि जहाँ यथार्थ तपका सद्भाव ही नहीं है, वहाँ उन शुभ भावोंमें आरोप किसका किया जावे ? ] जे योग-संवरयुक्त जीव बहुविध तपो सह परिणमे, तेने नियमथी निर्जरा बहु कर्म केरी थाय छे। १४४। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293