Book Title: Punchaastikaai Sangrah
Author(s): Kundkundacharya, 
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 251
________________ २२२ ] Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates पंचास्तिकायसंग्रह समाप्तं च मोक्षमार्गावयवरूपसम्यग्दर्शनज्ञानविषयभूतनवपदार्थव्याख्यानम् ।। अथ मोक्षमार्गप्रपञ्चसूचिका चूलिका । जीवसहावं णाणं अप्पडिहददंसणं अणण्णमयं । चरियं च तेसु णियदं अत्थित्तमणिंदियं भणियं ।। १५४।। ज्ञानमप्रतिहतदर्शनमनन्यमयम् । जीवस्वभावं चारित्रं च तयोर्नियतमस्तित्वमनिन्दितं भणितम् ।। १५४।। और मोक्षमार्गके अवयवरूप सम्यग्दर्शन तथा सम्यग्ज्ञानके विषयभूत नव पदार्थोंका व्याख्यान भी समाप्त हुआ। * अब 'मोक्षमार्गप्रपंचसूचक चूलिका है। = १। मोक्षमार्गप्रपंचसूचक विस्तृत कथन करनेवाली । २। चूलिकाके अर्थके लिए पृष्ठ १५१ का पद टिप्पण देखे । [ भगवान श्रीकुन्दकुन्द मोक्षमार्गका विस्तार बतलानेवाली; मोक्षमार्गका विस्तारसे करनेवाली; मोक्षमार्गका आत्मस्वभाव अनन्यमय निर्विघ्न दर्शन ज्ञान छे; ग्ज्ञाननियत अनिंध जे अस्तित्व ते चारित्र छे । १५४ । Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com

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