Book Title: Punchaastikaai Sangrah
Author(s): Kundkundacharya, 
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 269
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates २४०] पंचास्तिकायसंग्रह [भगवानश्रीकुन्दकुन्द दसणणाणचरित्ताणि मोक्खमग्गो त्ति सेविदव्वाणि। साधूहि इदं भणिदं तेहिं दुबंधो व मोक्खो वा।। १६४।। दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्ग इति सेवितव्यानि। साधुभिरिदं भणितं तैस्तु बन्धो वा मोक्षो वा।। १६४।।। दर्शनज्ञानचारित्राणां कथंचिद्वन्धहेतुत्वोपदर्शनेन जीवस्वभावे नियतचरितस्य साक्षान्मोक्षहेतुत्वद्योतनमेतत्। अमूनि हि दर्शनज्ञानचारित्राणि कियन्मात्रयापि परसमयप्रवृत्त्या संवलितानि कृशानु-संवलितानीव घृतानि कथञ्चिविरुद्धकारणत्वरूढेर्बन्धकारणान्यपि - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - गाथा १६४ अन्वयार्थ:- [ दर्शनज्ञानचारित्राणि ] दर्शन-ज्ञान-चारित्र [ मोक्षमार्गः ] मोक्षमार्ग है [इति] इसलिये [ सेवितव्यानि ] वे सेवनयोग्य हैं- [इदम् साधुभिः भणितम् ] ऐसा साधुओंने कहा है; [ तैः तु] परन्तु उनसे [बन्धः वा ] बन्ध भी होता है और [ मोक्षः वा] मोक्ष भी होता है। टीका:- यहाँ, दर्शन-ज्ञान-चारित्रका कथंचित् बन्धहेतुपना दर्शाया है और इस प्रकार जीवस्वभावमें नियत चारित्रका साक्षात् मोक्षहेतुपना प्रकाशित किया है। यह दर्शन-ज्ञान-चारित्र यदि अल्प भी परसमयप्रवृत्तिके साथ मिलित हो तो, अग्निके साथ मिलित घृतकी भाँति [अर्थात् 'उष्णतायुक्त घृतकी भाँति], कथंचित् विरुद्ध कार्यके कारणपनेकी व्याप्तिके कारण बन्धकारण भी है। और जब वे १। घृत स्वभावसे शीतलताके कारणभूत होनेपर भी, यदि वह किंचित् भी उष्णतासे युक्त हो तो, उससे [कथंचित् ] जलते भी हैं; उसी प्रकार दर्शन-ज्ञान-चारित्र स्वभावसे मोक्षके कारणभूत होने पर भी , यदि वे किंचित् भी परसमयप्रवृतिसे युक्त हो तो, उनसे [कथंचित् ] बन्ध भी होता है। २। परसमयप्रवृत्तियुक्त दर्शन-ज्ञान-चारित्रमें कथंचित् मोक्षरूप कार्यसे विरुद्ध कार्यका कारणपना [अर्थात् बन्धरूप कार्यका कारणपना ] व्याप्त है। दृग, ज्ञान ने चारित्र छे शिवमार्ग तेथी सेववां -संते कडुं, पण हेतु छे ओ बंधना वा मोक्षना। १६४। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293