Book Title: Punchaastikaai Sangrah
Author(s): Kundkundacharya, 
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 292
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates कहानजैनशास्त्रमाला] नवपदार्थपूर्वक-मोक्षमार्गप्रपंचवर्णन [२६३ प्रवचनस्य सारभूतं पञ्चास्तिकायसंग्रहा-भिधानं भगवत्सर्वज्ञोपज्ञत्वात् सूत्रमिदमभिहितं मयेति। अथैवं शास्त्रकार: प्रारब्धस्यान्त-मुपगम्यात्यन्तं कृतकृत्यो भूत्वा परमनैष्कर्म्यरूपे शुद्धस्वरूपे विश्रान्त इति श्रद्धीयते।।१७३।। इति समयव्याख्यायां नवपदार्थपुरस्सरमोक्षमार्गप्रपञ्चवर्णनो द्वितीयः श्रुतस्कन्धः समाप्तः।। स्वशक्तिसंसूचितवस्तुतत्त्वै र्व्याख्या कृतेयं समयस्य शब्दैः। स्वरूपगुप्तस्य न किंचिदस्ति कर्तव्यमेवामृतचन्द्रसूरेः।।८।। - - - - - - - इस प्रकार शास्त्रकार [श्रीमद्भगवत्कुन्दकुन्दाचार्यदेव ] प्रारम्भ किये हुए कार्यके अन्तको पाकर, अत्यन्त कृतकृत्य होकर, परमनैष्कर्म्यरूप शुद्धस्वरूपमें विश्रांत हुए [-परम निष्कर्मपनेरूप शुद्धस्वरूपमें स्थिर हुए ] ऐसे श्रद्धे जाते हैं [ अर्थात् ऐसी हम श्रद्धा करते हैं ] ।। १७३ ।। इस प्रकार [श्रीमद्भगवत्कुन्दकुन्दाचार्यदेवप्रणीत श्री पंचास्तिकायसंग्रहशास्त्रकी श्रीमद् अमृतचन्द्राचार्यदेवविरचित ] समयव्याख्या नामकी टीकामें नवपदार्थपूर्वक मोक्षमार्गप्रपंचवर्णन नामका द्वितीय श्रुतस्कन्ध समाप्त हुआ। [अब, 'यह टीका शब्दोने की है, अमृतचन्द्रसूरिने नहीं' ऐसे अर्थका एक अन्तिम श्लोक कहकर अमृतचन्द्राचार्यदेव टीकाकी पूर्णाहुति करते हैं: ] __ [श्लोकार्थ:-] अपनी शक्तिसे जिन्होंने वस्तुका तत्त्व [-यथार्थ स्वरूप] भलीभाँति कहा है ऐसे शब्दोंने यह समयकी व्याख्या [ -अर्थसमयका व्याख्यान अथवा पंचास्तिकायसंग्रहशास्त्रकी टीका] की है; स्वरूपगुप्त [ –अमूर्तिक ज्ञानमात्र स्वरूपमें गुप्त ] अमृतचंद्रसूरिका [ उसमें ] किंचित् भी कर्तव्य नही हैं ।। [८]।। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com

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