Book Title: Pravachana Sara
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 25
________________ १५१ द्रव्य और गुण पर्यायमें विपरीताभिनिवेशको प्राप्त हुआ जीवका जो वह भाव है वह मोह कहलाता है । उस मोहसे आच्छादित हुआ जीव राग और द्वेषको पाकर क्षुभित होने लगता है। मोह राग और द्वेष यह तीन प्रकारका मोह ही शुद्धात्मलाभका परिपंथी है -- विरोधी है ।। ८३ ।। आगे बंधके कारण होनेसे मोह राग और द्वेष नष्ट करने योग्य हैं ऐसा कहते हैंमोहेण व रागेण व, दोसेण व परिणदस्स जीवस्स । -- प्रवचनसार जायद विविहो बंधो, तम्हा ते संखवइदव्वा । ।८४ ।। मोह राग और द्वेषसे परिणत जीवके विविध प्रकारका बंध होता है इसलिए वे सम्यक् प्रकारसे क्षय करनेके योग्य है ।। बंधका कारण त्रिविध मोह ही है, अतः मोक्षाभिलाषी जीवको उसका क्षय करना चाहिए । । ८४ । । आगे मोहके लिंग (चिह्न) बतलाते हैं, इन्हें जानकर उत्पन्न होते ही नष्ट कर देना चाहिए ऐसा कहते हैं अट्टे अजधागहणं, करुणाभावो य तिरियमणुएसु । विसएस अप्पसंगो, मोहस्सेदाणि लिंगाणि । । ८५ ।। पदार्थोंका अन्यथा ज्ञान, तिर्यंच और मनुष्योंपर करुणाभाव तथा इंद्रियोंके विषयोंमें आसक्ति ये मोहके चिह्न हैं। इन प्रवृत्तियोंसे मोहके अस्तित्वका ज्ञान होता है ।। ८५ ।। आगे मोहका क्षय करनेके लिए अन्य उपायका विचार करते हैं। -- जिणसत्थादो अट्ठे, पच्चक्खादीहिं बुज्झदो णियमा । खीयदि मोहोवचयो, तम्हा सत्थं 'समधिदव्वं ॥ ८६ ।। प्रत्यक्षादि प्रमाणोंके द्वारा जिनेंद्रप्रणीत शास्त्रसे पदार्थोंको जाननेवाले पुरुषका मोहका समूह नियमसे नष्ट हो जाता है इसलिए शास्त्रका अध्ययन करना चाहिए । । ८६ । । आगे जिनेंद्र भगवान्के द्वारा कहे हुए शब्दब्रह्ममें पदार्थोंकी व्यवस्था किस प्रकार है? इसका निरूपण करते हैं. दव्वाणि गुणा तेसिं, पज्जाया अट्ठसण्णया भणिया । ते गुणपज्जाणं, अप्पा दव्वत्ति उवदेसो । । ८७ ।। द्रव्य और गुणके पर्याय अर्थ नामसे कहे गये हैं, इन तीनोंमें गुण और पर्यायोंका जो स्वभाव है १. समहिदव्वं ज. वृ. ।

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