Book Title: Pravachana Sara
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 30
________________ अब उत्पाद व्यय और ध्रौव्यके पारस्परिक अविनाभावको सुदृढ़ करते हैं अर्थात् इस बातका निरूपण करते हैं कि उक्त तीनों धर्म परस्पर एक-दूसरेको छोड़कर नहीं रह सकते -- ण भवो भंगविहीणो, भंगो वा णत्थि संभवविहीणो। उप्पादो वि य भंगो, ण विणा धोव्वेण अत्थेण।।८।। उत्पाद व्ययसे रहित नहीं होता, व्यय उत्पादसे रहित नहीं होता और उत्पाद तथा व्यय दोनों ही ध्रौव्य रूप पदार्थके बिना नहीं होते। __किसी भी द्रव्यमें नूतन पर्यायकी उत्पत्ति, उसकी पूर्व पर्यायके नाशके बिना नहीं हो सकती और पूर्व पर्यायका नाश नूतन पर्यायकी उत्पत्तिके बिना नहीं हो सकता तथा पूर्वोत्तर पर्यायोंमें एकता ध्रौव्यके बिना संभव नहीं हो सकती अतः उत्पादादि तीनों धर्म परस्परमें अविनाभूत हैं अर्थात् एक दूसरेके बिना नहीं हो सकते हैं।।८।। आगे इस बातका निरूपण करते हैं कि उत्पादादि तीनों द्रव्यसे पृथक् नहीं हैं -- उप्पादट्ठिदिभंगा, विज्जंते पज्जएसु पज्जाया। 'दव्वं हि संति णियदं, तम्हा दव्वं हवदि सव्वं ।।९।। उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य पर्यायोंमें रहते हैं और पर्याय ही -- त्रिकालवर्ती अनेक पर्यायोंका समूह ही द्रव्य है अतः यह निश्चय है कि उत्पादादि सब द्रव्य ही हैं, उससे पृथक् द्रव्य नहीं है।।९।। अब उत्पादादि में समय भेदको दूर कर द्रव्यपना सिद्ध करते हैं -- समवेदं खलु दव्वं, संभवठिदिणाससण्णिदतॄहिं। एकम्मि चेव समये, तम्हा दव्वं खु तत्तिदयं ।।१०।। निश्चयसे द्रव्य, उत्पाद व्यय और ध्रौव्य नामक पदार्थोंसे समवेत है, एकमेक है, जुदा नहीं है और वह भी एक समयमें। अत: यह निश्चय है कि उत्पादादि तीनों पदार्थ द्रव्य स्वरूप हैं -- उससे भिन्न नहीं हैं।।१०।। आगे अनेक द्रव्योंके संयोगसे होनेवाली पर्यायोंके द्वारसे द्रव्यमें उत्पादादिका विचार करते पाडुब्भवदि य अण्णो, पज्जाओ पज्जओ वयदि अण्णो। दव्वस्स तंपि दव्वं, णेव पणटुंण उप्पण्णं ।।११।।। १. यदि 'दव्वं हि' के स्थानपर 'दव्वम्हि' ऐसा सप्तम्यंत पाठ मान लिया जाय तो यह अर्थ हो सकता है कि उत्पाद व्यय और ध्रौव्य पर्यायोंमें विद्यमान हैं और पर्यायें द्रव्यमें विद्यमान हैं अतः यह सब द्रव्य ही हैं यह निश्चयपूर्वक कहा जाता है।

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