Book Title: Pravachana Sara
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 34
________________ १६० कुन्दकुन्द - भारती इस प्रकारका द्रव्य, स्वभावमें द्रव्यार्थिक तथा पारमार्थिक नयोंकी विवक्षासे क्रमश: सत् और असत् इन दो भावोंसे संयुक्त उत्पादको सदा प्राप्त होता है। जिस प्रकार क्रमसे होनेवाली कटक कुंडलादि पर्यायोंमें सुवर्ण पहले से ही विद्यमान रहता है व नवीन उत्पन्न नहीं होता है। इसलिए उसका उत्पाद सदुत्पाद कहलाता है उसी प्रकार क्रमसे होनेवाली नर नारकादि पर्यायोंमें जीवादि द्रव्य पहले से ही विद्यमान रहता है, नवीन नवीन उत्पन्न नहीं होता है, इसलिए द्रव्यार्थिक नयकी अपेक्षासे उनका उत्पाद सदुत्पाद कहलाता है। और जिस प्रकार सुवर्णसे क्रमसे होनेवाली कटक कुंडलादि पर्यायें नयी उत्पन्न होती हैं, उसी प्रकार जीवादि द्रव्योंमें क्रमसे होनेवाली नर नारकादि पर्यायें नयी नयी ही उत्पन्न होती हैं, अतः पर्यायार्थिक नयसे उसका असदुत्पाद कहलाता है । । १९ ।। -- अब द्रव्यार्थिक नयसे जिस सदुत्पादका वर्णन किया है उसीका पुनः समर्थन करते हैं. वो भवं भविस्सदि णरोऽमरो वा परो भवीय पुणो । किं दव्वत्तं पजहदि, ण जहं अण्णो कहं होदि ।। २० ।। जीवद्रव्य परिणमन करता हुआ देव अथवा अन्य कुछ रूप होगा सो तद्रूप होकर क्या अपनी द्रव्यत्व शक्तिको -- जीवत्व भावको छोड़ देता है? यदि नहीं छोड़ता है तो अन्यरूप कैसे हो सकता है? कालक्रमसे द्रव्यमें अनंत पर्यायें उत्पन्न होती हैं, परंतु वे अन्वय शक्तिसे साथमें लगे हुए द्रव्यत्वभावको नहीं छोड़ते हैं अतः द्रव्यत्व भावकी अपेक्षा उन अनंत पर्यायोंका उत्पाद सदुत्पाद ही कहलाता है ।। २० ।। अब पर्यायार्थिक नयसे द्रव्यमें स्थित जिस असदुत्पादका वर्णन किया उसका समर्थन करते हैं -- ओ हो देवो देवा वा माणुसो व सिद्धो वा । एवं अहोज्जमाणो, अणण्णभावं कथं लहदि । । २१ । । है वह उस समय देव नहीं है और जो देव है वह उस समय मनुष्य अथवा सिद्ध नहीं है, क्योंकि एक द्रव्यकी एक कालमें एक ही पर्याय हो सकती है। इस प्रकार देवादि रूप नहीं होनेवाला मनुष्यादि, परस्परमें अभिन्न भावको किस प्रकार प्राप्त हो सकता है ? पर्याय क्रमवर्ती होता है अतः पूर्व पर्यायमें उत्तर पर्यायका और उत्तर पर्यायमें पूर्व पर्यायका अभाव सुनिश्चित रहता है और यही कारण है कि उत्तर क्षणमें होनेवाली पर्यायका उत्पाद असदुत्पाद कहलाता है। यह कथन पर्यायार्थिक नयकी अपेक्षा है ।। २१ ।। अब एक ही द्रव्यमें अन्यत्वभाव और अनन्यत्वभाव ये दो परस्परविरोधी भाव किस तरह रहते हैं इसका वर्णन करते हैं --

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