Book Title: Pratyekbuddh Charitram
Author(s): Jain Dharm Vidya Prasarak Varg
Publisher: Jain Dharm Vidya Prasarak Varg

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Page 4
________________ पो चरित्रं // 14 // तत्रास्ति दक्षिणे नागे / जरतदेत्रमुत्तमं // षट्खंगमप्यखंझ य–दाश्चर्याय कथं न | तत् // 15 // भूलामिनीहृदि स्फार-हारलक्ष्मीसहोदरा // वैरिवर्गकृताकंपा। चंपा तत्रालवत्पुरी // 16 // यत्र प्रासाददंनेन / खयमेत्य सुराचलः // चलध्वजाजुजेनास्ते / सुरानाकारयन्निव // 17 // वसंति यत्र राजानो / नवप्रासादनंदिताः // परं यरिणश्चक्रु-नवप्रासादनंदिताः // 17 // यत्र श्रीवासुपूज्यस्य / कल्पकल्याणपंचकं // जगदानंदसंपादि। संजातं पापवंचकं // 15 // तत्र राजा महान्यायी / प्रजायामतिवत्सलः // खर्गे खर्गाधिप श्व / दधिवाहन इत्यनूत् // 20 // सुता चेटकराजस्य / नाम्ना पद्मावती सुता // सर्वांतःपुरमुख्याजूमाझी तस्य महीपतेः // 21 // अन्यदा सा महादेवी / शुजखप्नेन सूचितं // कुदौ सरोवरे गर्न / बजार कलहंसवत् // 25 // गर्नस्थार्जकमाहात्म्या-उत्पेदे दोहदो हृदि // रोचिर. ज्रकगर्नस्थाद् / गृहे गृहमणेरिव // 3 // प्रौढमातंगमारूढा / नृपनेपथ्यनूषिता॥ निजज= स्वहस्तेन / धृतबत्रपवित्रिता // 24 // ददाना बहुदानानि / शृएवती मधुरध्वनि // विहरामि कदा हंत / स्वोद्यानेषु यदृच्छया // 25 // इत्येवं दोहदस्तस्या / यावन्नो पूर्यते तदा // || . P.P.AC.Gunratnasuri M.S. * Jun Gun Aaradhak Trust

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