Book Title: Pratyekbuddh Charitram
Author(s): Jain Dharm Vidya Prasarak Varg
Publisher: Jain Dharm Vidya Prasarak Varg
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________________ चरित्र जो हृदये दधानौ / नरेंद्रगेहेऽचटतां नरौ तौ // क्रमागतो सतमभूमिकायां / सुवर्णमाणिक्यवि निर्मितायां // 33 // सुस्फारशृंगारविराजमाना / मुखश्रिया निर्जितराजमाना // शचीरति श्रीत्यनुरूपरूपा / श्रृंगारशृंगारसमखरूपा // 34 // चक्षुध्यस्यांजनरंजितस्य / कटाक्षविदेपण१४] | तः दणेन // विदोजयंतीव मनोऽमराणां / प्रचंमवातादिव सागरांजः॥ 35 // उहाय शय्या तलतः सबीलं / हे नाथ नाथेति मुदा वदंती // कन्या मनोज्ञा विनयानतांगी। तयोध्योः संमुखमाजगाम // 36 // त्रिनिर्विशेषकं // उवाच सा योजितपाणिपद्मा / निर्नायकाहं गम| यांबनूव // श्हाययावदिवसान्निरर्थान् / नाथाररयोजतमालतीव // 35 // कृता सनाथाद्यदिने जवद्न्यां / मत्पुण्ययोगेन समागतान्यां // तत्स्थीयतामत्र मया सहाहं / दासीव ना. र्या लवतोर्नवामि // 30 // इदं गरीयो नगरं सरंजं / तथा च धान्यानि धनान्यमूनि // एषा च कन्या सुकृतोपनीत-मिदं समस्तं नवदीयमेव // ३ए // श्रुत्वेति वाक्यानि तयोदि. तानि / प्रमोदतोऽचिंतयतां हृदेति // कन्यास्ति किं नागकुमारिकेयं / किं वामरी काप्यथ मानवी वा // 40 // किं वानया चेतसि चिंतया नौ / नैवेदशी कापि भृगेक्षणास्ति ॥जक्ता - - PPAC Gunratnasun MS Jun Gun Aaradhak Trust

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