Book Title: Pratyekbuddh Charitram
Author(s): Jain Dharm Vidya Prasarak Varg
Publisher: Jain Dharm Vidya Prasarak Varg
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________________ तस्मास्किल यानपात्रं / गत्वा विदेशं श्रियमर्ज़यावः // 15 // लक्ष्मीवतः कूटनृतोऽप्यदातुः / / प्रत्येक सर्वेऽपि लोकाः परितो तमंति // अहर्निशं चंद्ररविग्रहाः किं / प्रदक्षिणां मेरुगिरेन दयुः // // 16 // परस्परं ताविति मंत्रयित्वा / गत्वा च तातानुमात गृहीत्वा // नानाधनोपार्जनहेतवे तौ। पयोनिधौ पूरयतःस्म पोतं // 17 // तस्मिन् वहित्रे धनिनोऽपरेऽपि / प्रतिष्य - जांमान्यचटन्ननेके // वातानिघातैरथ तच्चचाल / रथो यथा सुंदरसौरलेयैः // 17 // पोते | गतेजोनिधिमध्यजागं / वायुर्ववौ कोऽपि महाप्रचंमः // उदबलस्तत्र च शैल,गो-तुंगास्तरंगाः कृतरंगनंगाः // 15 // इतस्ततो दोलयतिम पोत-स्तथांतरावर्तिजनस्य चेतः॥बुमामि हा बांधव रद रहे-त्याद्यारवस्तत्र निरंतरोऽजूत् // 20 // अकापुरेते कुलदेवताया।नानाप्रकाराएयुपयाचितानि // अस्मार्घरन्ये प्रवीतरागं / रोगातुरा वैद्यमिवानवयं // 21 // शेवालजालैरिव नीलवणेरंलोवपुन्मीलदगैः परीतः॥ श्वोपनीतः कुलदेवातनि-पोज नैस्तत्र गतैरदर्शि // 12 // बुजुक्षितैराम्रफलं रसालं / सारोवरं नीरमिवातपाः // श्वांधका॥रे पतितैः प्रदीपं / बीपं तमालोक्य जनैरतोषि // 3 // निर्यामकास्तं तटिनीपतेस्तटं / निः || / PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust i

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