Book Title: Pratyekbuddh Charitram
Author(s): Jain Dharm Vidya Prasarak Varg
Publisher: Jain Dharm Vidya Prasarak Varg
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________________ 10 प्रत्येक चैवं / वचसा प्रीणयन्मनः॥ ए४ // एतस्यां जुवि नास्माकं / गंतुं समुचितं भवेत् // वत्से / गड यथेचं त्वं / नेतव्यं न कुतश्चन ॥ए॥ अत्र दंतपुरं नाम / पुरमस्ति समीपगं // ततश्चंपापुरी नित्यं / सार्था गत्यनेकशः // ए६ // नवत्या तत्र गंतव्यं / सार्थेन सह केनचित् // तव मार्गे शिवं नूया-दित्युक्त्वा ववलेज्य सः॥ ए // सा पुनस्तेन मार्गेण / चलंत्यचिरकालतः // विवेकिलोकसंपूर्ण / प्राप दंतपुरं पुरं // एज // धर्मार्थिनी धर्मशालां / पृष्ट्वा गत्वा महासतीः // विनयेन ववंदे सा। धर्मभूर्तीरिवांगिनीः // एy // क्रमेण सकलाः साध्वी -वंदित्वा जक्तिनाजिनी // राझी महत्तरापार्श्वे / समागत्य विवेश सा // 10 // दधार सं. पुटीकृत्य / सा मुखाग्रे करांबुजे // खनाववैरतो वक्त्रं-दुना संकोचिते श्व // 1 // महत्तरा बनाणैवं / श्राविके कुत आगता // धर्मध्यानसुधापानं / तापहृस्क्रियते न वा // 2 // तदा प्रादुर्नवदुःखा / सा साश्रुनयनाजनि // अनीष्टानाषणात्कस्य / कष्टं शव्यति नो दणात् // // 3 // तस्या मातुरिवाग्रे सा / कथामचीकथनिजां // गुरवो धर्मनिष्टानां / पितृमातृसमाः || खबु // 4 // महत्तरा बजाषेऽथ / तस्या हृदयमंदिरं // विरहानलसंतप्तं / शमयंती वचोऽमृतैः P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trus!

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