Book Title: Pratyekbuddh Charitram
Author(s): Jain Dharm Vidya Prasarak Varg
Publisher: Jain Dharm Vidya Prasarak Varg
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________________ // 5 // उठेगः क्रियते कस्मा–न्न खकीयो हि कश्चन // संसारे विद्यते कोऽपि / न हि क स्यापि वसनः // 6 // एष जीवो नवं ब्राम्य-नकार्षीत्सर्वजंतुनिः // समस्तानपि संबंधांचरित्र|| स्तनोकं कियतां धरेत // 7 // माता पिता तथा वाता। जर्ता च स्वजनोऽपि चासोनि जायते वैरी। यदि स्वार्थो न सिष्ठ्यति // 7 // एको निःकारणं बंधुः / सर्वकल्याणकारकः // जवाब्धितारको धर्मः / स्नेहस्तत्र विधीयते // ए // शरीरमस्थिरं लोके / संपदो विपदास्पदं // एक एव स्थिरो धर्मः / श्रयणीयो विचक्षणैः // 10 // समीहितानि सिध्यति / धचिंतामणेरिव // दृष्टांतस्तत्र विषये / पद्मावति विभावय // 11 // तथाहि आसीत्पुरा श्रीपुरनामधेयं / पुरं गरीयो नगरेषु श्रेष्टं // तत्रानवामिपतिः प्रतापी।महानयो नाम नयिकधाम // 12 // पुरे च तस्मिन् वसतिस्म धन्या-निधस्तदा श्रेष्टीवरोधनाढ्यः // अनंगसेनाजितसेनसंज्ञा चुनौ शुजौ तस्य सुतावजूतां // 13 // तयोः सखा को ऽपि पयोधिमार्गा-दुपार्य वित्तं प्रचुर समागात् // तं वित्तवंतं धनदोपमानं / दृष्ट्वेति तौ || मंत्रयतःस्म तंत्रं // 14 // आवां न हद्दादिकमंगनेन / श्रियं कदाप्यर्जयितुं समर्थों // आरुह्य P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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