Book Title: Pratyekbuddh Charitram
Author(s): Jain Dharm Vidya Prasarak Varg
Publisher: Jain Dharm Vidya Prasarak Varg

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Page 8
________________ चरित्रं श्रुपयोधारा-पवलीकृतनूतला // रुरोद प्रतिशब्देन / रोदयंती च रोदसीं // 60 // पद्मावती रुदंती ता-मवलोक्यैव पद्मिनी // मनुमरऊकारै-ररोदीच्छ्यामलानना // 61 // वा. तानिघातधूतान-शाखाः सर्वेऽपि शाखिनः // धूनयंति शिरांसीव / तस्या फुःखावलोकनात्॥ 6 // रुदित्वा चिरकालं सा। विललापेति पुःखिता // प्राणनाथ निराधारा / त्यक्तारण्ये कथं हहा // 63 // अथवा प्राणनाथस्य / न दोषोऽयं यतस्तदा // न मया प्रतिपद्यापि / गृहीता वटवलरी // 64 // अहं गर्भवती बाला / नीचित्तात्र कानने // एकाकिनी समानीता। दैव किं करुणा न ते // 65 // मुहुर्मुहुर्महादुःखा-मुमूर्ड च रुरोद च // करुणखरमत्यंतं / विलालापाप्यनेकशः // 66 // अथ धैर्य समालंब्य / सैवं चित्ते व्यचिंतयत् // शोकं विवेकमुक्ताना-मुचितं किं करोम्यहं // 6 // नानेकैः शोकसंतापै—न विलापैर्न रोदनैः // कदाचिन्मुच्यते प्राणी / पुरातनकुकर्मणा // 67 // मध्ये व्याघ्रादिजीवानां / कश्चिष्म्यापादयेयदि // परलोकस्य पाथेयं / किंचिधर्म करोमि तत् // ६ए // प्रपये देवमहतं / तथा चारित्रिणो गुरून् // जिनेंद्रनाषितं धर्म-मेवं सम्यक्त्वमग्रहीत् // 0 // अर्हतः शरणं संतु। सिका. P.P.AC.Gunratnasun M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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