Book Title: Pratyekbuddh Charitram Author(s): Jain Dharm Vidya Prasarak Varg Publisher: Jain Dharm Vidya Prasarak Varg View full book textPage 7
________________ प्रत्येक तेन / विषमचरणघ्यः // स एवं चिंतयामास / किंचित्स्थित्वा स्वमानसे // 45 // श्तोम | म प्रिया याति / पुरी रे जवेदितः // हा हा करोमि किमह-मितो व्याघ्र इतस्तटी // // 50 // अथवा शीलमाहात्म्या-त्वयमेव महासती // एषा गृहं समेष्यति / किं क्लिशामि मुधैव तत् // 51 // एवं विचिंत्य राजाथ / चचाल वपुरींप्रति // चंपायामागतो राज्यं / स पूर्ववदपालयत् // 55 // बहुमार्ग समुवंध्य / तपनातपतापितः // गजोऽथ सखिलापूर्ण / प्रविवेश सरोवरं // 53 // स तत्र सलिलोबोले-झेलैश्चिक्रीम शीतलैः // पद्मावत्यपि सातंक -मुत्ततार शनैः शनैः // 54 // चंगं तरंगनंगीनि-ौरांगी सा पयोत्तरं // तरंती राजहंसी. व / निःससार सरोवरात् // 55 // सापश्यदेकतो व्याघान् / घुघुरारवजीषणान् // एकतः सिंहसंदोहान् / स्फारफूत्कारकारकांन् // 56 // एकतःप्रचलजिह्वान्। विजिह्वान् कृतफूत्कृतीन् // सनहानेकतो लिलान् / यमतानिवापरान् // 57 // युग्मं // कांदिशीका जयोसांतालोकयंती दिशो दश // संत्रस्तहरिणीवासौ / रराज तरबेक्षणा // // निश्चेष्टा काष्टवत्कष्टा-न्मूर्बितां पतितां त्रुवि // वातः सजनवडीतो / दुःस्थां सुस्थीचकार तां ॥५॥श्रवद-।। PPP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak TrustPage Navigation
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