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ॐ जम्बूद्वीपे भरत क्षेत्रे आर्यखण्डे भारत देशे प्रांते...... नगरे...... मासे.. पक्षे...... तिथौ ...... वासरे.... वीर निर्वाण संवत्सरे..... तमे दिनांक...... जैन मन्दिर वेदी प्रतिष्ठा कार्यस्य निर्विघ्न समाप्त्यर्थं एतस्य मन्त्रस्य...... जाप्यानि अद्य प्रभृति पर्यन्तं करिष्यामः इति संकल्पं कुर्मः सर्व शान्तिर्भवतु अर्हं नमः स्वाहा |
तिथि
सीधे हाथ में जल, सुपारी, हल्दी गाँठ, सरसों लेकर उक्त मन्त्र पढ़ कर सामने पाटे पर छोड़ें । शान्ति में कागज पर सबको मन्त्र लिख कर देवें । जप वालों से पढ़वा कर देख लेवें । उन्हें रात्रि को चारों प्रकार का आहार त्याग, एक बार शुद्ध भोजन व ब्रह्मचर्य पूर्वक रहने का नियम करावें । प्रातः और शाम को दिन में ही दो बार एक साथ जप में सम्मिलित हों । माला के १०८ दानों को १ माला मान कर गिनती मालाओं की करें। जैसे २१००० का संकल्प किया हो तो २१० मालाएँ सब मिला कर जपेंगे । दीपक सीधे हाथ की ओर, धूपदान बायीं ओर रखें। जप का आसन, सूत की माला, लोंग माला की गणना हेतु रखें । धूप अग्नि में कभी-कभी सीधे हाथ से खेते रहें। एक बड़े पुट्ठे पर सब का नाम लिख कर मालाओं की गणना का हिसाब प्रतिदिन लिखते रहें । पूर्व या उत्तर दिशा में जप वालों का मुख रहे। कभी पश्चिम दिशा में भी रख सकते हैं। दक्षिण वर्जित है । अन्त में २१००० का दशांश मन्त्रों का हवन होगा, जो सब मिला कर पूरा करेंगे। महिलाएँ शान्ति जप में सम्मिलित नहीं होतीं । शान्ति यज्ञ में सौभाग्यवती सम्मिलित होती हैं ।
मण्डप शुद्धि
ॐ क्षां क्षीं क्षं क्षौं क्षः प्रतिष्ठा मण्डप - वेदी प्रभृति स्थानानां शुद्धिं कुर्मः ।
इस मन्त्र से ९ बार जल मन्त्रित कर चारों ओर छिड़क देवें । पश्चात् पूजा करने वालों पर शुद्धि हेतु पुष्प क्षेपण कर मण्डप शुद्धि करावें । पूजकों में ही देवों की स्थापना करें । विनायक यन्त्र स्थापन कर पूजा करावें । निम्न प्रकार मन्त्रोच्चारण करें और पूजकों पर पुष्प क्षेपण करें
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चतुर्णिकायामर संघ एष आगत्य यज्ञे विधिना नियोगम् । स्वीकृत्य भक्त्या हि यथार्ह देशे सुस्था भवन्त्वाह्निककल्पनायाम् ||१|| चतुर्णिकाय देवाः स्वनियोगं कुरुत कुरुत |
(पुष्प क्षेपण)
आयात मारुतसुराः पवनोद्भटाशाः संघद्द संलसित निर्मलतान्तरीक्षा | वात्यादिदोषपरिभूतवसुन्धरायां प्रत्यूहकर्मनिखिलं परिमार्जयन्तु ॥२॥ वातकुमार देवा: स्थानशुद्धयर्थं स्वनियोगं कुरुत कुरुत स्वाहा | (डाभ कूंची से हवा)
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[ प्रतिष्ठा प्रदीप ]
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