Book Title: Pratishtha Pradip Digambar Pratishtha Vidhi Vidhan
Author(s): Nathulal Jain
Publisher: Veer Nirvan Granth Prakashan Samiti

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Page 295
________________ बलदेव हुए। कंस के चाचा देवसेन की पुत्री देवकी (बहन) से कृष्ण उत्पन्न हुए। कृष्ण ने उग्रसेन राजा की कन्या राजुलमती का विवाह नेमिनाथ से करने का प्रस्ताव रखा । नेमिनाथ का कुमारकाल ३०० वर्ष का है, बारात के मध्य में पशुओं को बाड़े में घिरा देखकर उनकी रक्षा हेतु वैराग्य ग्रहण कर लिया। श्रावण शुक्ला ६ को वैराग्य लिया । द्वारावती के राजा वरदत्त के यहाँ आहार हुआ। ५६ दिन तप कर आसोज कृष्ण १ को केवलज्ञान प्राप्त किया। गिरनार पर ही राजुलमती ने भी तप किया । नेमिप्रभु ने ६९९ वर्ष ९ माह ४ दिन विहार कर एक माह का योग ग्रहण कर मोक्षगमन किया । वैराग्य, पूर्व जन्म स्मृति से हुआ। पूर्वभव १. वनभील, २. अभिकेतु सेठ, ३. सौधर्म स्वर्ग, ४. चिंतामणि विद्याधर, ५. माहेन्द्र स्वर्ग में देव, ६. अपराजित राजा विदेह में, ७. अच्युत स्वर्ग में इन्द्र, ८. सुप्रतिष्ठराय हस्तिनापुर में तीर्थंकर प्रकृति का बंध किया, ९. जयंत विमान में अहमिन्द्र, १०. भगवान् नेमिनाथ - हरिवंश में। व्रतोद्योतन श्रावकाचार में उल्लेख है कि चित्रवती ने समाधिगुप्त मुनि का व्रत खंडन किया उसके फलस्वरूप राजुलमती पति खंडन को प्राप्त हुई। भगवान् नमिनाथ से ५ लाख वर्ष पीछे नेमिनाथ हुए। -स्वस्तिस्ताक्ष्येऽरिष्ट नेमिः (वेद) भगवान् पार्श्वनाथ भगवान् नेमिनाथ के मोक्ष जाने के पश्चात् ८३००० वर्ष बाद भगवान् पार्श्वनाथ हुए । आज से लगभग पौने तीन हजार वर्ष पूर्व पार्श्वनाथ का जन्म हुआ । वाराणसी के महाराज विश्वसेन की महारानी ब्रह्मादेवी (वामा) के गर्भ से भगवान् का जन्म हुआ । गर्भ समय वैशाख कृष्णा २ तथा जन्म काल पौष वदी ११, श्यामवर्ण। दीक्षा तिथि पौष वदी ११ पूर्वाह्न, शरीर ऊँचाई ९ हाथ । आयु १०० वर्ष । काश्यप गोत्र, उग्र वंश । कुमारकाल ३० वर्ष । दीक्षा लेने साथ में ६०६ राजा, उपवास ४ दिन । केवलज्ञान चैत्र वदी १४ । मोक्ष श्रावण सुदी ७ । वैराग्य का कारण-अयोध्या नृप जयसेन भेंट लेकर आये उन्होंने ऋषभदेव का वर्णन किया। महिपाल नाना पंचाग्नि तप कर रहे थे। हाथी से उतर कर नाग-नागिनी (मरणासन्न) को णमोकार मन्त्र दिया । वे धरणेन्द्र-पद्मावती हुए । वह तापस (कमठ का जीव) संवर देव हुआ। मुनि पार्श्वनाथ पर ७ दिन तक उपसर्ग किया । धरणेन्द्र ने रक्षा की। पूर्वभव मरुभूति (कमठ का लघु भ्राता) मंत्रि पुत्र, २.वज्रघोष वनहस्ती- १२ व्रतपालन किये, ३. १२वें स्वर्ग में देव, ४. विद्याधरकुमार, ५. अच्युत स्वर्ग में देव, ६. वज्रनाभि चक्रवर्ती, ७. अहमिन्द्र, ८. आनन्दराय अयोध्या नृपति, सोलह कारण भावना भायी, ९. सहस्रार स्वर्ग में इन्द्र, १०. भगवान् पार्श्वनाथ । आयु का एक मास शेष रहा तब योग निरोध कर कर्मों का नाश कर शिखरजी से मुक्त हुए। खंडगिरि उदयगिरि (हाथी गुफा) में शिलालेख भगवान् पार्श्वनाथ की प्रतिमा फणवाली-समंतभद्र ने [प्रतिष्ठा-प्रदीप] [ २२७ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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