Book Title: Pratishtha Pradip Digambar Pratishtha Vidhi Vidhan
Author(s): Nathulal Jain
Publisher: Veer Nirvan Granth Prakashan Samiti
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प्रतिष्ठा प्रदीप तृतीय-भाग
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सिद्ध प्रतिमा प्रतिष्ठा विधि सिद्धप्रतिष्ठा यदि तत्र योगसंरोधनं पूज्यचतुर्घना कर्माणि संयोज्य चतुः प्रदीपानुत्तारयेत्तत्र शिवोर्ध्व गंतॄन् ॥ तत्राष्टगुणानां पूजा कार्या सम्यक्त्वमुख्यसुविधीनां । अन्यो विधिर्विधेयस्तावानेवात्र गुरुकुलाद् बुद्ध्वा ॥
कर्मदहन मण्डल मांडा जावे। सिद्ध यंत्र (वृहद् व लघु) प्रतिष्ठा में विराजमान करें । पूर्व मन्त्रों से सिद्ध प्रतिमा की आकर शुद्धि करें ।
आहवानन्
ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं सिद्ध परमेष्ठिन् अत्रागच्छ अत्रागच्छ ।
ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं सिद्ध परमेष्ठिन् अत्र तिष्ठ तिष्ठ ।
ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं सिद्ध परमेष्ठिन् अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् । (सन्निधिकरणं) सिद्ध परमेष्ठी - पूजा करें
अस उसा सिद्धाधिपतये नमः
इस मन्त्र से तिलक विधि करें
(जयसेन प्रतिष्ठा, पृष्ठ ३०७)
ॐ ह्रीं सिद्धाधिपतये मुख वस्त्रं ददामीति स्वाहा ।
(परदा लगावें)
ॐ ह्रीं मुखवस्त्रमपनयामि स्वाहा, ॐ ह्रीं सिद्धाधिपतये प्रबुद्धस्व प्रबुद्धस्व ध्यातृजनमनांसि पुनहि पुनीहि (नेत्रोन्मीलन करें)
ॐ ह्रीं सिद्धाधिपतितीर्थोदकेनाभिषिंचामीति स्वाहा ।
(इति तीर्थोदकेन स्नपनम् )
आयुर्द्राघयतु व्रतं दृदयतु व्याधीन्व्यपोहत्वयं । श्रेयांसि प्रगुणीकरोतु वितनोत्वासिंधु शुभ्रं यशः ॥ शत्रून् शातयतु श्रियोभिरमयत्वश्रांतमुन्मुद्रयत्वानंदं भजतां प्रतिष्ठित इह श्रीसिद्धनाथः सताम् ॥ (पुष्पांजलिः)
प्राण प्रतिष्ठा, सूरिमन्त्र, केवलज्ञान मन्त्र के पश्चात् सिद्ध भक्ति पाठ, अष्टगुणारोपण करके मातृका मन्त्र ॐ अ आ से श ष स ह सिद्धचक्राधिपतयेनमः । इसका १०८ बार जाप करें ।
[ प्रतिष्ठा प्रदीप ]
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[ २०९
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