Book Title: Prasad Mandan Author(s): Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar View full book textPage 2
________________ प्रस्तावना भारतीय प्राचीन स्थापत्यकला के सुन्दर कलामय देवालयों, राजमहलों, किलामों, जलाशयों, यंत्रों मोर मनुष्यालयों प्रादि अनेक मनोहर रचनाओं को देखकर अपना मन पतीव प्रानन्दित होता है। यही 'वास्तुशिल्प' हैं । area की उत्पत्ति के विषय में अपराजिता के सूत्र ५३ ले ५५ तक में विस्तारपूर्वक न लीला है। उसका सारांश यह कि प्राचीन समय में धकासुर नाम के राक्षस का विनाश करने के लिये महादेव को संग्राम करना पड़ा। उसके परिश्रम से महादेवजी के कपाल में से पसीना का एक बिन्दु भूमि पर अग्निकुण्ड में गिरा। इसके योग से वहां एक बड़ा भयंकर विशालकाय भूत उत्पन्न हुआ, उसको दोश्रो ......पटक: करके उसके विशालकाय शरीर के ऊपर पेंतालीश देव और ग्राम देवियां ऐसे कुल ५३ देष बैठ गये और निवास करने लगे । जिसे पं० सू० ५५० १२ में कहा है कि 'frame after वास्तु arrat faदुः । पर्यात् ये देवोंका निवास होने से महाकाय भूग वास्तुपुरुष कहा जाता है। इसका इस ग्रंथ के प्राध्याय में इलोक ६६ से ११४ तक किया गया है । यह प्रासाद मण्डन ब्रांच शिल्पिवर्ग में अधिक प्रास्त है, इसके आधार पर आधुनिक सोमपुरा ब्रा जातीय शिल्प देवालय बांधने का कार्य अपनी वंशपरंपरा से करते आये है । यही इस ग्रंथ की विशेष महत्वता है और देवालयों की मुख्य चौदह जाति बतलाई हैं | देखो प्रध्या० १ श्लोक ६ का अनुवाद), इनमें से मगर जाति के देवालय का यह प्रशस्त व माना जाता है। इसमें देवालयों के गुणदोष और माप पूर्वक बांधने का सविस्तर वर्णन है । देवालय बनाने का महत्व - sier का की हैं। मंदिर अथवा राजमहल होता है। उनमें से यह ग्रंथ देवमंदिर के निर्माण विषय का कारण शास्त्रों में लिखा है कि- "सुरालयो विभूत्यर्थं भूषणार्थं पुरस्य तु । नराणां भूक्तिमुक्त्यर्थं सत्यार्थं चैव सर्वदा ॥ लोकानां धर्महेतुश्च क्रीडाहेतुश्च स्वभु बाम् । कीर्त्तिरायुर्यशोऽर्थं च राज्ञां कल्याणकारकः ।" अप० सू० ११५ मनुष्यों के ऐश्वर्थ के लिये, नगर के भूषशारूप श्रृंगार के लिये मनुष्यों को अनेक प्रकार की मो सामग्री को और मुक्तिपद को देनेवाला होनेसे, सब प्रकार की सत्यता की पूर्णग के लिये, मनुष्यों को धर्म का कारणभूत होने से, देवों को क्रोडा करने की भूमि होने से, कीसि मायुष्य we as को वृद्धि के लिये और राजाधों का कल्याण के लिये देशलय बनाया जाता है ।Page Navigation
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