Book Title: Prameyratnamala Author(s): Shrimallaghu Anantvirya, Rameshchandra Jain Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad View full book textPage 8
________________ सोनागिर ॥ आशीर्वाद विगत नियम से जैनागम को मिल करने वाला एक ATTA मिता ऐसा --, गया कि मत्मपर असता का आगा आने लगाएकान्तवाद - नियामास तर पकाने लगा। मान के इस भौतिक पुर में अमन के अपना प्रभाव पलाने में विश्राम नहीं का होता, कटु सत्य ! कारण जीत के मिका साकार जनादिकाल से उले रहे है । विगत ....नों में एकान्तवाद, नत्व का तरीका सगा कर निश्यप जा की आड़ में स्याहार को पीछे धकेलने का प्रयास किया है। निगा साहित्य को प्रमाण - प्रचार किया है । आशा कुन्य कुन्य २० आइ लेकर अपनी रमानाही है और i भागये बदल दिए हैं अशा अनर्थ कर दिया है। जनों में अपनी समता पर एकान्त' में लोहालिया पर अपनी ओर से जनता को प्रोषित सामादित्य सुलभ ही कमा पाए । अधार्म-श्री विमलमाRUA महाराज का हीरक आमनी वर्ष हमारे लिए एक स्वयि अवसर लेकर आया है. भामिका स्याद्वादमती प्रामाजी ने आधर्म की स्पं हमारे सानि एक, समपतिमा A पूज्य आचार्य की रोक पानी के अवसर पर आप शाहिला का प्रतुर प्रकाशन : और भह - E को सुलग हो । फलत ७५ 3॥ गन्धों के पलाशन का विनय किया गया है. क्योदि सत्यम के तेजस्वी होने पर अनसत्य उपकार स्वा. ही पलासा कर जाता है। आई गमो के प्रकाशन है जिन अमात्माजों ने अपती स्वीकृति दी एवं प्रत्या- परोक्ष रूप से जिस किसी के भी 3रा महदाज में किसी भी प्रकार का सामान किया ! सबको हमारा आशीर्वाद है । पारधाम भरत शायर ना.11-७. १९१. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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