________________ कि दैवासिक-प्रतिक्रमण में चार, रात्रिक प्रतिक्रमण में दो, पाक्षिक में बारह, चातुर्मासिक में बीस और सांवत्सरिक में चालीस लोगस्स का ध्यान करना चाहिए। पुनः इसी प्रसंग में इनकी श्लोक संख्या एवं श्वासोच्छ्वास की संख्या का भी वर्णन किया गया है। इस दृष्टि से दैवसिक प्रतिक्रमण में 100, रात्रिक में 50, पाक्षिक में 300, चातुर्मासिक में 500 और वार्षिक में 1000 श्वासोच्छ्वास का ध्यान करना चाहिए। इसी क्रम में आगे क्षामणकों की संख्या का भी विचार किया गया है। . चतुर्थ 'प्रत्याख्यान' द्वार में सर्वप्रथम निम्न दस प्रत्याख्यानों की चर्चा है - (1) भविष्य सम्बंधी, (2) अतीत सम्बंधी, (3) कोटि सहित, (4) नियंत्रित, (5) साकार, (6) अनाकार, (7) परिमाण व्रत, (8) निरवशेष, (9) सांकेतिक, (10) काल सम्बंधी प्रत्याख्यान। सांकेतिक प्रत्याख्यान में दृष्टि, मुष्टि, ग्रंथी आदि जिन आधारों पर सांकेतिक प्रत्याख्यान किए जाते हैं- उनकी चर्चा है। इसी क्रम में गोम्पाया समधी दया पाचशाहों की चर्चा की गई है। इसमें नवकारसी, अर्द्ध-पौरुषी, पौरुषी आदि के प्रत्याख्यानों की चर्चा है। इसी क्रम में दस विकृतियों (विगयों) की, बत्तीस अनन्तकायों की और बावीस अभक्ष्यों की भी चर्चा की गई है। साथ ही इसमें शुद्ध प्रत्याख्यान के कारण एवं स्वरूप का विवेचन भी है। - पांचवां कायोत्सर्ग द्वार है। इसके अंतर्गत मुख्य रूप से कायोत्सर्ग के 19 दोषों की चर्चा की गई है। इसी क्रम में इन दोषों के स्वरूप का भी किंचित् दिग्दर्शन कराया गया है। ___ 'प्रवचनसारोद्धार' का छठा द्वार श्रावक प्रतिक्रमण के अतिचारों का वर्णन करता है, इसके अंतर्गत संलेखना के पांच, कर्मादान के पंद्रह, ज्ञानाचार के आठ, दर्शनाचार के आठ, चारित्राचार के आठ, तप के बारह, वीर्य के तीन, सम्यक्त्व के पांच, अहिंसा आदि पांच अणुव्रत, दिक्व्रतों आदि तीन गुणव्रतों एवं सामायिक आदि चार शिक्षाव्रतोंऐसे श्रावक के बारह व्रतों के साठ अतिचारों का उल्लेख है। यह समस्त विवरण श्रावक प्रतिक्रमण के सूत्र के अनुरूप ही हैं। ‘प्रवचनसारोद्धार' के ७वें द्वारों में भरत एवं ऐरवत क्षेत्र में हुए तीर्थंकरों (जिन) के नामों की सूचि प्रस्तुत की गई है। इसके अंतर्गत जहां भरतक्षेत्र के अतीत, वर्तमान और अनागत तीनों चोविसियों के जिनों के नाम दिए गए हैं, वहीं ऐरवत क्षेत्र के वर्तमान काल के जिनों के ही नाम दिए गए हैं। हम देखते हैं कि प्रवचनसारोद्धार' के प्रथम सात द्वारों तक तो अपने भेद प्रभेदों