Book Title: Prakrit evam Sanskrit Jain Granth Bhumikao ke Aalekh
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 147
________________ होने के समय कितने दिन का तप था, इसका उल्लेख है। आगे ४५वे द्वार में तीर्थंकरों के द्वारा अपने निर्वाण के समय किए गए तप का उल्लेख है। ..प्रस्तुत कृति का ४६वां द्वार उन जीवों का उल्लेख करता है, जो भविष्य में तीर्थंकर होने वाले हैं। __ ४७वें द्वार में इस बात की चर्चा की गई है कि अर्श्वलोक, तिर्यकलोक, जल, स्थल आदि स्थानों से एक साथ कितने व्यक्ति मुक्ति को प्राप्त कर सकते हैं। ___ ४८वां द्वार हमें यह सूचना देता है कि एक समय में एक साथ कितने पुरुष, कितनी स्त्रियां अथवा कितने नपुंसक सिद्ध हो सकते हैं। ४९वें द्वार में सिद्धों के भेदों की चर्चा है। ज्ञातव्य है कि वैसे तो सिद्धों में कोई भेद नहीं होता, किंतु जिस पर्याय (अवस्था) से सिद्ध हुए हैं, उसके आधार पर सिद्धों के पंद्रह भेदों की चर्चा की गई है। ५०वें द्वार में सिद्धों की अवगाहना अर्थात् उनके आत्म-प्रदेशों के विस्तारक्षेत्र की चर्चा की गई है। इसी क्रम में यह बताया गया है कि उत्कृष्ट अवगाहना वाले दो, जघन्य अवगाहना वाले चार तथा मध्यम अवगाहना वाले एक सौ आठ व्यक्ति एक साथ सिद्ध हो सकते हैं। अवगाहना के संदर्भ में चर्चा करते हुए प्रस्तुत कृति के टीकाकार ने यह भी बताया है कि उत्कृष्ट अवगाहना पांच सौ धनुष और जघन्य अवगाहना दो हाथ परिमाण होती है। यहां यह ज्ञातव्य है कि सिद्धों की उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्य अवगाहना के संदर्भ में विशेष चर्चा प्रस्तुत कृति के छप्पनवें , सत्तावनवें एवं अट्ठावनवें द्वार में की गई है। ५१वें द्वार में स्वलिंग, अन्यलिंग और गृहस्थलिंग की अपेक्षा से एक समय में कितने सिद्ध हो सकते हैं, इसका विवेचन किया गया है। गृहस्थ लिंग से चार, अन्यलिंग से दस और स्वलिंग से एक सौ आठ व्यक्ति एक समय में सिद्ध हो सकते हैं। आगे ५२वें द्वार में यह बताया गया है कि निरंतर अर्थात् बिना अंतराल कितने समय तक जीव सिद्ध हो सकते हैं और उनकी संख्या कितनी होती है। ५३वे द्वार में स्त्री, पुरुष और नपुंसक की अपेक्षा से एक समय में कितने व्यक्ति सिद्ध हो सकते हैं, इसकी चर्चा है। इस संदर्भ में यह बताया गया है कि एक समय में बीस स्त्रियां, एक सौ आठ पुरुष और दस नपुंसक शरीर पर्याय से सिद्ध हो सकते हैं। पुनः इसी द्वार में यह भी बताया गया है कि नरक, भवनपति, व्यंतर और तिर्यक् लोक के स्त्री-पुरुष

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