Book Title: Prakrit evam Sanskrit Jain Granth Bhumikao ke Aalekh
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 188
________________ आज उसे यह समझना है कि वह विज्ञान के साथ किसको जोड़ना चाहता है, हिंसा को या अहिंसा को। आज उसके सामने दोनों विकल्प प्रस्तुत हैं। विज्ञान+अहिंसा = विकास। विज्ञान+हिंसा = विनाश। जब विज्ञान अहिंसा के साथ जुड़ेगा तो वह समृद्धि और शांति लाएगा, किंतु जब उसका गठबंधन हिंसा से होगा तो संहारक होगा और अपने ही हाथों अपना विनाश करेगा। आज विज्ञान के सहारे मनुष्य ने इतना पाशविक बल संग्रहित कर लिया है कि वह उसका रक्षक न होकर कहीं भक्षक न बन जाए, यह उसे सोचना हैं। महावीर ने स्पष्ट रूप से कहा था- ‘अत्थि सत्थेन परंपरं, नत्थि असत्थेन परंपरं।' शस्त्र एक से बढ़कर एक हो सकता है, किंतु अहिंसा से बढ़कर अन्य कुछ नहीं हो सकता। आज सम्पूर्ण मानव समाज को यह निर्णय लेना होगा कि वे वैज्ञानिक शक्तियों का प्रयोग मानवता के कल्याण के लिए करना चाहते हैं या उसके संहार के लिए। आज तकनीकी प्रगति के कारण मनुष्यमनुष्य के बीच की दूरी कम हो गई है। आज विज्ञान ने मानव समाज को एक-दूसरे के निकट लाकर खड़ा कर दिया है। आज हम परस्पर इतने निर्भर बन गए हैं कि एक-दूसरे के बिना खड़े भी नहीं रह सकते, किंतु दूसरी ओर आध्यात्मिक दृष्टि के अभाव के कारण हमारे हृदयों की दूरी अधिक विस्तीर्ण हो गई है। हृदय की इस दूरी को पाटने का काम विज्ञान नहीं अध्यात्म ही कर सकता है। विज्ञान का कार्य है- विश्लेषित करना और अध्यात्म का कार्य है-संश्लेषित करना। विज्ञान तोड़ता है आध्यात्म जोड़ता है विज्ञान विनियोजित है तो आध्यात्म संयोजक। विज्ञान पर केंद्रित है तो अध्यात्म आत्म-केंद्रित। विज्ञान सिखाता है कि हमारे सुख-दुःख का केंद्र वस्तुएं हैं, पदार्थ हैं, इसके विपरीत अध्यात्म कहता है कि सुख-दुःख का केंद्र आत्मा है। विज्ञान की दृष्टि बाहर देखती है, अध्यात्म अंदर में देखता है। विज्ञान की यात्रा अंदर से बाहर की ओर है तो अध्यात्म की यात्रा बाहर से अंदर की ओर। मनुष्य को आज यह समझना है कि यदि यात्रा बाहर की ओर होती रही तो वह शांति, जिसकी उसे खोज है, कभी नहीं मिलेगी, क्योंकि बहिर्मुखी यात्री शांति की खोज वहां करता है, जहां वह नहीं है। शांति अंदर है, उसकी खोज बाहर व्यर्थ है। इस सम्बंध में एक रूपक याद आता है। एक वृद्धा शाम के समय कुछ सी रही थी। संयोग से अंधेरा बढ़ने लगा और सूई उसके हाथ से छूटकर कहीं गिर पड़ी। महिला की झोपड़ी में प्रकाश का साधन नहीं था और प्रकाश के बिना सूई की खोज असम्भव (184)

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