Book Title: Prakrit evam Sanskrit Jain Granth Bhumikao ke Aalekh
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 195
________________ सम्बंध में चर्चा हुई तो मैंने उनकी आध्यात्मिक रुचि को देखते हुए उन्हें उपाध्याय यशोविजयजी के अध्यात्मवाद पर शोध कार्य करने के लिए कहा। इस हेतु उनके आधारभूत ग्रंथों की खोज की तो पता चला कि उपाध्याय यशोविजयजी के आध्यात्मिक दृष्टि से युक्त निम्न तीन ग्रंथ महत्त्वपूर्ण हैं - अध्यात्मसार, ज्ञानसार और अध्यात्मोपनिषद् / मैंने उन्हें इन्हीं तीन ग्रंथों के आधार पर अपने शोधकार्य को आगे बढ़ाने को कहा, किंतु अध्यात्मसार का कोई भी हिन्दी रूपांतरण न होने से सर्वप्रथम यही निश्चय किया गया कि इस शोधकार्य की दिशा में आगे बढ़ने के पूर्व इसका हिन्दी अनुवाद करने का प्रयत्न किया जाए। अतः मैंने यह कार्य उन्हें ही सौंपा और इस प्रकार मेरे मार्गदर्शन एवं सहयोग से ग्रंथ का अनुवाद भी पूर्ण हुआ और उनका शोध-प्रबंध भी तैयार हुआ। मेरी दृष्टि में श्वेताम्बर परम्परा में जो आध्यात्मिक दृष्टि सम्बंधी ग्रंथ मिलते हैं, उनमें अध्यात्मसार का स्थान सर्वोपरि कहा जा सकता है। स्वाध्यायरसिक पाठकों के लिए उनकी आध्यात्मिक अभिरुचि जीवंत रखने के लिए इस ग्रंथ का स्वाध्याय महत्त्वपूर्ण सिद्ध हो सकता है। अतः इसका प्रकाशन हो, यह भी आवश्यक समझा गया। यद्यपि डॉ. रमणलाल पी. शाह का अध्यात्मसार गुजराती अनुवाद सहित उपलब्ध होता है। किंतु हिन्दी अनुवाद सहित इस ग्रंथ का कोई भी संस्करण उपलब्ध नहीं था, अतः इसके प्रकाशन के लिए प्रयास किए गए। आचार्य श्री जयंतसेन सूरीश्वरजी मसा से निवेदन किया गया और उन्होंने राजराजेंद्र प्रकाशन ट्रस्ट, अहमदाबाद के द्वारा इसके प्रकाशन की अनुमति प्रदान की। आज यह प्रसन्नता का विषय है कि उक्त प्रकाशन से यह ग्रंथ प्रकाशित हो रहा है। निश्चय ही यह प्रकाशन साध्वीश्री प्रीतिदर्शनाजी के श्रम को सार्थक करेगा और स्वाध्याय रसिकों के लिए न केवल उनकी स्वाध्याय रुचि को विकसित करने वाला होगा, अपितु उसके माध्यम से वे अपने आध्यात्मिक विकास के मार्ग में आगे बढ़ेंगे।

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