Book Title: Prakrit evam Sanskrit Jain Granth Bhumikao ke Aalekh
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 204
________________ तुलनात्मक विवेचन - जहां तक प्रस्तुत कृति में वर्णित गृहस्थ जीवन सम्बंधी षोडश संस्कारों का प्रश्न है, ये संस्कार भारतीय समाज में प्रचलित रहे हैं, सत्य यह है कि ये संस्कार धार्मिक संस्कार न होकर सामाजिक संस्कार रहे हैं और यही कारण है कि भारतीय समाज के श्रमण धर्मों में भी इनका उल्लेख मिलता है। जैन परम्परा के आगमों जैसे ज्ञाताधर्मकथा, औपपातिक, राजप्रश्नीय, कल्पसूत्र आदि में इनमें से कुछ संस्कारों का जैसे जातकर्म या जन्म संस्कार, सूर्य-चंद्र दर्शन संस्कार, षष्ठी संस्कार, नामकरण संस्कार, विद्यारम्भ संस्कार आदि का उल्लेख मिलता है, फिर भी जहां तक जैन आगमों का प्रश्न है, उनमें मात्र उनके नामोल्लेख ही है। तत्सम्बंधी विधि-विधानों का विस्तृत विवेचन नहीं है। जैन आगमों में गर्भाधान संस्कार का उल्लेख न होकर शिशु के गर्भ में आने पर माता द्वारा स्वप्नदर्शन का ही उल्लेख मिलता है। इसी प्रकार विवाह के भी कुछ उल्लेख है, किंतु उनमें व्यक्ति के लिए विवाह की अनिवार्यता का प्रतिपादिन नहीं है और न तत्सम्बंधी किसी विधि विधान . का उल्लेख है। दिगम्बर परम्परा के पुराण ग्रंथों में भी इनमें से अधिकांश संस्कारों का उल्लेख हुआ है, किंतु उपनयन आदि संस्कार जो मूलतः हिन्दू परम्परा से ही सम्बंधित रहे हैं, उनके उल्लेख विरल हैं। दिगम्बर परम्परा में मात्र यह निर्देश मिलता है कि भगवान् ऋषभदेव के पुत्र भरत चक्रवर्ती ने व्रती श्रावकों को स्वर्ण का उपनयन सूत्र प्रदान किया था। वर्तमान में भी दिगम्बर परम्परा में उपनयन (जनेउ) धारण की परम्परा है। इस प्रकार जैन धर्म में श्वेताम्बर एवं दिगम्बर दोनों ही प्रमुख परम्पराओं में एक सामाजिक व्यवस्था के रूप में इन संस्कारों के निर्देश तो हैं, किंतु मूलभूत ग्रंथों में तत्सम्बंधी किसी भी विधिविधान का कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं है। वर्धमानसूरि की प्रस्तुत कृति का यह वैशिष्ट्य है कि उसमें सर्वप्रथम इन षोडश संस्कारों का विधि-विधान पूर्वक उल्लेख किया गया है। जहां तक मेरी जानकारी है, वर्धमानसूरिकृत इस आचारदिनकर नामक ग्रंथ से पूर्ववर्ती किसी भी जैन ग्रंथ में इन षोडश संस्कारों का उनके विधि-विधान पूर्वक उल्लेख नहीं हुआ। मात्र यही नहीं परवर्ती ग्रंथों में भी ऐसा सुव्यवस्थित विवेचन उपलब्ध नहीं होता है। यद्यपि दिगम्बर परम्परा में षोडश संस्कार विधि, जैन विवाहविधि आदि के विधि-विधान से सम्बंधित कुछ ग्रंथ हिन्दी भाषा में प्रकाशित हैं, किंतु जहां तक मेरी जानकारी है, श्वेताम्बर परम्परा में वर्धमानसूरि के पूर्व और उनके पश्चात् भी इन षोडश संस्कारों से सम्बंधित कोई ग्रंथ नहीं लिखा गया। इस प्रकार जैन परम्परा में षोडश संस्कारों का विधिपूर्वकं उल्लेख 200

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