Book Title: Prakrit evam Sanskrit Jain Granth Bhumikao ke Aalekh
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

View full book text
Previous | Next

Page 184
________________ दूसरी विशेषता यह है कि उसने वर्णवाद, जातिवाद आदि उन सभी अवधारणाओं की जो मनुष्य में ऊंच-नीच का भेद उत्पन्न करती थी, अस्वीकार किया। उसके अनुसार सभी मनुष्य समान हैं। मनुष्यों में श्रेष्ठता और कनिष्ठता का आधार न तो जाति विशेष या कुल विशेष में जन्म लेना है और न सत्ता और सम्पत्ति ही। वह वर्ण, रंग, जाति, सम्पत्ति और सत्ता के स्थान पर आचरण की श्रेष्ठता का प्रतिपादन करता है। उत्तराध्ययनसूत्र के १२वें एवं २५वें अध्याय में वर्ण व्यवस्था और ब्राह्मण की श्रेष्ठता की अवधारणा पर करारी चोट करते हुए यह कहा गया है कि जो सर्वथा अनासक्त, मेघावी और सदाचारी हैं, वही सच्चा ब्राह्मण है और वही श्रेष्ठ है। न कि किसी कुल विशेष में जन्म लेने वाला व्यक्ति। (स) यज्ञ आदि बाह्य क्रिया-काण्डों का आध्यात्मिक अर्थ- जैन अध्यात्म ने यज्ञ, तीर्थ-स्थान आदि धर्म के नाम पर किए जाने वाले कर्मकाण्डों की न केवल आलोचना की, अपितु उन्हें एक आध्यात्मिक अर्थ भी प्रदान किया। उत्तराध्ययनसूत्र में यज्ञ के आध्यात्मिक स्वरूप का सविस्तार विवेचन है। उसमें कहा गया है कि जीवात्मा अग्निकुण्ड है, मन, वचन, काया की प्रवृत्तियां ही कलछी (चम्मच) है और कर्मों (पापों) का नष्ट करना ही आहुति है, यही यज्ञ शांतिदायक है और ऋषियों ने ऐसे ही यज्ञ की प्रशंसा की है। तीर्थ-स्थान को भी आध्यात्मिक अर्थ प्रदान करते हुए उत्तराध्ययन (2/46) में कहा गया है- धर्म जलाशय है, ब्रह्मचर्य घाट (तीर्थ) हैं, उसमें स्नान करने से ही आत्मा निर्मल और शुद्ध हो जाती है। (द) दान, दक्षिणा आदि के स्थान पर संयम की श्रेष्ठता- यद्यपि धर्म के चार अंगों में दान को स्थान दिया गया है, किंतु जैन आध्यात्मिक दृष्टि यह मानती है कि दान की अपेक्षा संयम का पालन ही अधिक श्रेष्ठ है। उत्तराध्ययन (9/40) में कहा गया है कि प्रतिमास सहस्रों गायों का दान करने की अपेक्षा संयम का पालन अधिक श्रेष्ठ है। अध्यात्म और विज्ञान : वर्तमान संदर्भ औपनिषदिक ऋषिगण, बुद्ध और महावीर भारतीय अध्यात्म परम्परा के उन्नायक रहे हैं। उनके आध्यात्मिक चिंतन ने भारतीय मानस को आत्मतोष प्रदान किया है, किंतु आज हम विज्ञान के युग में जीवन जी रहे हैं। वैज्ञानिक उपलब्धियां भी आज हमें उद्वेलित कर रही हैं। आज का मनुष्य दो तलों पर जीवन जी रहा है। यदि विज्ञान को नकारता है तो जीवन की सुख-सुविधा और समृद्धि के खोने का खतरा है। दूसरी ओर अध्यात्म को नकारने पर आत्म-शांति से वंचित होता है। आज आवश्यकता है कि ऋषि-महर्षियों (180)

Loading...

Page Navigation
1 ... 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212