Book Title: Prakrit Vidya Samadhi Visheshank Author(s): Kundkund Bharti Trust Publisher: Kundkund Bharti TrustPage 11
________________ सल्लेखना जैसी विधि का निरूपण किया है। सद्गृहस्थ को दुर्भिक्ष, उपसर्ग और जर्जर होती काया तथा रोग के निःप्रतिकार अवस्था में सल्लेखना को विधिपूर्वक धारण करने की प्रेरणा दी है। समस्त धार्मिक क्रियाकलापों तथा साधना का अन्तिम अभीष्ट भी समाधिपूर्वक मरण है। नित्य-प्रति पूजा करते हुए श्रावक यही भावना भाता है- दुक्खक्खओ कम्मखओ बोहिलाहो सुगइगमणं समाहिमरणं निजगुणसंपत्ती होदु मज्झं। प्रत्येक धार्मिक अनुष्ठान में कायोत्सर्ग करना एक अनिवार्य अंग माना गया है। यह इस बात की संसूचक है कि काया के प्रति अत्यधिक राग का उत्सर्जन करने का भाव निरन्तर बना रहे। सप्त व्यसनों के त्याग के साथ अणुव्रतादि के परिपालन करने की अनिवार्यता भी कायोत्सर्ग के प्रति सचेष्ट रहने के अभिप्राय को इंगित करती है। वस्तुतः समाधिमरण या सल्लेखना उत्कृष्ट अभिधेय है। यह निरन्तर साधना की अपेक्षा रखती है। जैन परम्परा में भाव-शुद्धि पर जितना बल दिया गया है उतना किसी अन्य परम्परा में नहीं। जीवन को त्यागमय बनाने की प्रेरणा के स्वर भी स्तुति-स्तोत्र, पूजा-भक्ति में गुंजित हुए हैं। इतना ही नहीं, जीवन में आचरण की पवित्रता का भाव सतत रूप से जीवन्त रहे इस तथ्य पर निरन्तर सचेष्ट रहने की अपेक्षा भी की गई है। पण्डित बनारसी दास जी ने द्रव्य रूप से सप्त व्यसन के त्याग के लिए गृहस्थों को सचेष्ट किया है। ___आत्मस्वरूप की प्राप्ति की साधना इन सप्त सप्त-व्यसनों, मनोविकारों, कषायों को छोड़े बिना सम्भव नहीं है। यों तो साधना के अनेक मार्ग हैं, परन्तु सल्लेखना साधना का वह मार्ग है जिस पर आरूढ़ होकर कर्मबन्धनों से मुक्त होकर जीव अपने जीवन को उच्चतम शिखर पर अधिष्ठित कर सकता है। मानव-पर्याय की सफलता भी इसी साधना में निहित है। प्राकृतविद्या का प्रस्तुत अंक इसी सल्लेखना या समाधिमरण के हार्द को स्पष्ट करता है। संयोग की बात यह है कि इस युग के प्रथम आचार्य चारित्रचक्रवर्ती 'आचार्य शान्तिसागर जी मुनिराज के सल्लेखनापूर्वक मृत्यु का आलिंगन किए जाने का स्वर्ण-जयन्ती वर्ष है। संयम-साधना से हम सभी का जीवन आलोकित हो, जिससे अन्धकार के निबिड़ तम हम सब बाहर निकल सकें, इन भावना के साथ इस अंक को माननीय विद्वानों के महनीय सहयोग से साकार किया गया है। कतिपय लेख जो दिवंगत मनीषी विद्वानों के हैं और जिनकी उपयोगिता सर्वकालीक होने से उन्हें हमने संकलित किया है। सभी विद्वानों के सहयोग के प्रति साधुवाद व्यक्त करता हूँ। संयम-साधना से हमारा जीवन आलोकित हो और अन्धकार के भंवर से उबारने में सहायक हो इसी भावना के साथ। प्राकृतविद्या-जनवरी-दिसम्बर (संयुक्तांक) '2004 009Page Navigation
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