Book Title: Prakrit Pandulipi Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 58
________________ बीवालीनेंप्रनिव माध्यम प०ज्ञाबापसारीनें न० इमन र गुगुरुनें হবে श्में स० माझ श्री. प्राचीदिक वा० श नाचौला मोक्ष को यनिच इसमांना अथव समीयज्ञ पिमंबसं जएगा या एमसारिएका विनिचिदेगुरुशांतिए : ॥ त्रायरिश हिंवा हितोसिपी क०कदाचिणादि 90 शादी कमाई पिए 30 इमं गुरुसमी - 20 एकबार बोला म बा० पे०सदाकाल अथवा ल०वारनार बोला ओ इमजोन मोक्षार्थीको ॐ० अणवों लोनर हैं। उनकाईलामा हानिया गडी उंचिद्वेगुरुसया ॥ २॥ त्राल बने लवंते व न सीन रहें। कण्कदाचीन्या च० मूकीनेंश्रा० श्रासन भ० ज०जे कोई गुरु आदेसदी इते । २१ पोलाइनें रमानादिव्याकुलमको बुदिनंत • आदरपरको प• कर Jain Education International न० निमीत्तकयानि श्रासगंज जुनंपस्ऐि॥२३ : त्रासयु दिकाइ नं० मंथास्वगेन क० कदाचि ०गुरुसमी मानीनें पु० पूछे मूत्रादिका ५० तपसिल कथक यजमाने एक प्राकृत- पाण्डुलिपि चयनिका भावेंन इस्त्रा छिज्जानिवसे जाने क्या विकर्म संत विजायुं जलीनम ॥२॥ एवंवि नममहान सुत्रावेपु० सूत्रानासी० मूत्रार्थ विनाशिका इन For Private & Personal Use Only २२ Norma ०वि० वि सूत्रार्थक है ० निमगुरुम मिमें स०सांभतिमं मनुत्तमुतंत्रचनकुनयामा एससी सरावा गरे करने हा कशामु २३ मला बीना (४५) www.jainelibrary.org


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