Book Title: Prakrit Pandulipi Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 62
________________ ज०मइलो मन्वादिकमंत्री यनाथ कर्णपरो तलने श्रीलयरों करीब दं० सामकीन पपपरी वो वश्तीयार्वेकरीहर्षादिनकर नकरें प्रज्ञायरिसह २० घनादन करनेत्रां परिसह साघु‌रिसह २२ मरिससकारयुकारपरीसहे: यत्नापरीस हे चळा परीस हे दंसणयरी महोपरी सहारा १०० बीसनो स्वरूप ० क ० कारण मंगोची महान प्रतिनि० उम्मते उ कहिए अनुक्रमे बानी सपरिमहा १ दिग्मू मस्वरूपपलड रदेवपपरी महाश्ररुणा धर्मास्वामी इंज बूझतें सु.सभिलि मे. मुगनै कहता माध्ये सणांय विभत्ती कामांप बेश्यातिने उदाहरिस्सा मियुचिकरो हमे || 2:22 दि थ देशाने निगला 70 पनंनालिसायान. फिलाट्किनले स्वयमेव नमः कालादिकमचें नहीं २ काংকत परिसमाहिषोपरि यमनेविमबलब परिम पहिलो साहिबोदो हिलो माटे नविनेश पाने ठेदाचेंफला स्वयंमेव न पापं ज पान हा माधनी कलो = |मिठापरि । तवेसी निस्कूथाभव)नचिदेन छिंदा व एएनएन पया वरागः काली | संघाप्रमुख कि० साधून इवले शरीरमाहारनिमत्रानो जांच में कुल परे रहतचि समशी नसा चाले माह के दूध श्रनादिकपा० पाणी न नान करें एवम को च लेही पण मममार्गनविनाले उदक पचंयंका से किसवम संत मायनेचसए पारण स्माच्च दिए मए से चरें.... 16ག་ काकः कहना। एक दाने हमें नार्यानामरथी वैराग्यक्रम न तिवारी हतमित्र पुत्र सहित दीक्षाली वी/निरती चारमेयमपाहलें । एकदम्मा के साथ विहार करतानी पा ति हस्तिमितने कांगोल्या लि नाचममर्थमेश मा भांनें को हो साथ तुम्हें श्राधायॐ ॐ : पी १६ Jain Education International प्राकृत- पाण्डुलिपि चयनिका For Private & Personal Use Only (४९) www.jainelibrary.org

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