Book Title: Prakrit Pandulipi Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 81
________________ अरहन्तणमोकारो एक्को वि हवेज जो मरणकाले। सो जिणवयणे दिट्ठो संसारछेदणसमत्थो ।५३॥ जे भावणमोक्कारेण विणा सम्मत्तणाणचरणतवा। ण हु ते होंति समत्था संसारुछेदणं कादं ॥५४॥ चउरंगाए सेणाए णायगो जह पवत्तओ होदि। तह भावणमोकारो मरणे तवणाणचरणाणं ॥५५॥ आराधणापडायं गेण्हतस्स हु करो णमोकारो। मल्लस्स जयपडायं जह हत्थो घेत्तुकामस्स॥५६॥ अणाणी वि य गोवो आराधित्ता मदो णमोक्कारं। चम्पाए सेट्ठिकुले जादो पत्तो य सामण्णं ॥५७॥ णमोक्कारं ॥ णाणोवउगरहिदेण॥ ण सक्का चित्तणिग्गहो काउं। णाणं अंकुसभूदं मत्तस्स हु वित्तहत्थिस्स।।५८॥ विज्जा जहा पिसायं सुटु वउत्ता करेदि पुरिसवसं णाणं हिदयपिसायं सुट्ट वउत्तं तह करेदि॥५९॥ उवसमई कण्हसप्पो जह मंतेण विधिणा पउत्तेण। तह हिदयकिण्हसप्पो सुट्ठवउत्तेण णाणेण ॥६० ॥ आरण्णओ वि मत्तो हत्थी णियमिजदे वरत्ताए। जह तहा णियमिज्जदि सो णाणवरत्ताए मणहत्थी॥६१॥ जह मक्कडओ खणमवि मज्झत्थो अछिर्दु ण सक्केइ। तह खणमवि मज्झत्थो विसएहिं विणा ण होइ मणो॥६२॥ तम्हा सो उड्डहणो मणमक्कडओ जिणोवएसेण। रामेदव्वो णियदं तो सो दोसं ण काहिदि सो॥६३॥ तम्हा णाणुवओगो खवयस्स विसेसओ सदा भणिदो। जह विंधणोवओगो चंदयवेझं करितस्स ॥६४॥ णाणपदीवो पज्जलइ जस्स हियए विसुद्वलेसस्स। जिणदिट्ठमोक्खमग्गे पणास प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका (६८) Jain Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org

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