Book Title: Prakrit Margopadeshika
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Gurjar Granthratna Karyalay
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[५] चिच्या ण धणं च भारियं पव्वहओ हि सि अणगारियं । मा वंतं पुणो बि आविए
समयं० ण हु जिणे अज दीसइ बहुमए दीसइ मग्गदेसिए। संपह नेमाउए पहे
समयं० तिण्णो हु सि अण्णवं महं किं पुण चिट्ठसि तीरमागभो। अभितुर पारं गमित्तए
समयं० बुद्धस्स निसम्म भासियं सुकहियमदुपदोवसोहियं । रागं दोसं च छिंदिया सिद्धिगई गए गोयमे ॥
-उत्तरायणाई.
६ हरिकेसी सोवागो सोवागकुलसंभूओ गुणुत्तरधरो मुणी। हरिएसबलो नाम आसि भिक्खू जिइंदिनो॥ मणगुत्तो वयगुत्तो कायगुत्तो जिइंदिओ। भिक्खड्डा बंभइजम्मि जनवाडं उवडिओ। तं पासिऊगमिजंतं तवेण परिसोसियं । पंतोवहिउवगरणं उवहसंति अणारिया ॥ जाइमयं पडिथद्धा हिंसगा अजिइंदिआ।
अबंभचारिणो वाला इणं वयणमम्बवी ।। बंभणा कयरे आगच्छह दिवसवे काले विकराले फुस्कनासे।
ओमचेलए पैमुपिसायभूए संकरसं परिहरिय कंठे ॥
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